अनुज मीणा- गोंड, कोरकू, भारिया, सहरिया, बैगा, कोल और भील आदि जनजातियों से संबंधित सात आवास मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में बनाए गए हैं। लगभग पांच साल से इन आवासों के निर्माण का कार्य इन्हीं जनजातियों के कलाकारों द्वारा किया जा रहा था। खास बात यह है कि इन आवासों के भीतर जनजातीय कलाकार अपना लाइव फूड बनाएंगे और संग्रहालय में आने वाले पर्यटकों को खिलाएंगे भी। हर आवास में उस जनजाति द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुएं व अनाज के भंडारण भी रहेंगे। इन घरों के ऊपर पुताई के लिए भी पीली मिट्टी, छुई और गेरू का उपयोग व छत के लिए खप्पर का प्रयोग किया गया है। इन घरों में देश की प्रमुख जनजातियों के परिवार 3 से 6 महीने तक रहेंगे। बाद में रोटेशन के आधार पर दूसरी जनजातियों के परिवार इन आवासों में रहने के लिए आते रहेंगे। इन आवासों का उद्घाटन संभवत: जून- जुलाई में किया जाएगा।
सहरिया जनजाति का घर सभी घरों में सबसे अलग नजर आता है। इसमें मिट्टी का उपयोग न करते हुए पत्थर का उपयोग किया गया है। इसकी सभी दीवारों के साथ छत भी पत्थर से ही बनाई गई है। इसमें ना तो सीमेंट का उपयोग किया गया है और ना ही मिट्टी का।
कोरकू जनजाति के घर तैयार करने वाले सूरज सिंह कोरकू और फूलवती बाई ने बताया कि घर की दीवार के लिए बांस की टाट बनाई गई है, जिसकी मिट्टी से छपाई की गई है। अलग-अलग अनाज रखने के लिए तीन अलग-अलग कुठी बनाई हैं। वहीं छोटी-छोटी सामग्री रखने के लिए भी दीवार में चारों ओर आलिया बनाए गए हैं। धान पीसने के लिए मिट्टी और गेहूं पीसने के लिए पत्थर की चक्की भी बनी हुई है।
बैगा जनजाति के घर में बांस की टाट पर मिट्टी और भूसे से छपाई की गई है। यह बैगा जनजाति के घरों की पहचान होती है। घर के अंदर मचिया, खटिया, जुड़े हुए चूल्हे भी तैयार किए गए हैं। अनाज रखने के लिए बांस से खुटरी बनाई गई है, जिसमें मिट्टी से छपाई की गई है। दीवारों पर मिट्टी से ही कलाकृतियां बनाईं हैं।
गोंड जनजाति के घर बनाने वाले डोमन सिंह और कौशल्या बाई ने बताया कि उन्होंने घर को मिट्टी, लकड़ी, गोबर, छुई और बांस से तैयार किया है। दीवारों पर शादी-विवाह की रस्मों को लेकर डिजाइन बनी हुई हैं। अनाज रखने के लिए लिल्हार कोठी बनाई गई है, जिस पर बारीक नक्काशी की गई है। इसके साथ ही घर के ऊपर दूसरी मंजिल भी तैयार की गई है और छज्जा (बालकनी) भी बनाया गया है।
इन आवासों में जनजातीय समुदायों के व्यंजन और उनकी कला को देखने का अवसर भी मिलेगा। इन सात आवासों में भारिया, सहरिया, बैगा, गोंड और भील आदि जनजाति के परिवार रहेंगे। इस उपक्रम से शहरी समाज व युवाओं को देश के जनजातीय समाज को जानने-समझने का मौका मिलेगा। इसके साथसाथ वे वास्तविक भारत को उनकी असल बसाहटों में रहते हुए देख सकेंगे। - अशोक मिश्रा, अध्यक्ष जनजातीय संग्रहालय