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भोपाल। राजधानी के मध्य में स्थित राजभवन का नाम बदलकर अब लोक भवन कर दिया गया है। अब से मप्र के राज्यपाल का निवास लोक भवन के नाम से जाना जाएगा। माना जा रहा है कि राजशाही जैसी अवधारणा को बदलने और लोक सेवा को ध्यान में रखते हुए इसका नया नामकरण किया गया है। हालांकि 1880 में बने इस भवन का नाम कई बार बदला चुका है।

1880 में भोपाल की नवाब सुल्तान शाहजहां बेगम ने ब्रिटिश अधिकारियों के ठहरने के लिए वर्तमान एक भवन का निर्माण कराया। उस समय इसे लाल कोठी कहा जाता था। 1880 के बाद से लाल कोठी भोपाल में तैनात ब्रिटिश राजनीतिक एजेंटों का आधिकारिक निवास बन गई।
1 जून 1949 को भोपाल का भारत संघ में विलय हो गया और लगभग 250 साल पुराना रियासती शासन समाप्त हो गया। भारत सरकार ने भोपाल के प्रशासन के लिए एक चीफ कमिश्नर नियुक्त किया। लाल कोठी को उनके आधिकारिक निवास के रूप में चुना गया और इसका नाम बदलकर कमिश्नर हाउस कर दिया गया। लाल कोठी 1 जून 1949 से 1 दिसंबर 1956 तक कमिश्नर हाउस रही।
1956 के राज्यों के पुनर्गठन कानून के बाद भोपाल राज्य को मध्य प्रदेश में मिला दिया गया और भोपाल को नई राजधानी घोषित किया गया। इसके बाद भारत सरकार ने मध्य प्रदेश के राज्यपाल नियुक्त किए और लाल कोठी को फिर से राज्यपाल के आधिकारिक निवास के रूप में चुना गया। तब इसका नाम बदलकर राजभवन रख दिया गया, और तब से यह राज्यपालों का सरकारी निवास है।
यह भवन 1880 में नवाब शाहजहां बेगम ने यूरोपीय शैली में, फ्रांसीसी इंजीनियर ऑस्टेट कुक की निगरानी में बनवाया था। यह लगभग 15,423 वर्ग फीट क्षेत्र में फैला है और इसके निर्माण पर रु. 72,878, 3 आने और 1 पैसा खर्च हुआ था। यह भोपाल की पहली कोठी थी जिसकी छत लाल चीनी मिट्टी की टाइलों (कवेलू) से बनी थी, और इसका रंग भी लाल था। इसीलिए इसे लाल कोठी नाम मिला। उस समय भोपाल, जो एक मुस्लिम रियासत थी, में यह परंपरा थी कि किसी भी नए निर्माण से पहले मस्जिद की नींव रखी जाती थी। इसलिए लाल कोठी के परिसर में सबसे पहले एक छोटी मस्जिद बनाई गई।