Priyanshi Soni
12 Oct 2025
नई दिल्ली। मध्य पूर्व में दशकों से जारी हिंसा और तनाव के बीच अब एक नई उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है। मिस्र के शहर शर्म अल शेख (Sharm el-Sheikh) में 12 अक्टूबर 2025 को ‘गाजा शांति समझौते (Gaza Peace Accord)’ पर हस्ताक्षर होने जा रहे हैं। इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में दुनिया के 20 शीर्ष नेता शामिल होंगे।
मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी (Abdel Fattah el-Sisi) ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस समारोह में शामिल होने का विशेष निमंत्रण भेजा है। इस सम्मेलन की संयुक्त अध्यक्षता अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और सिसी करेंगे।
सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शनिवार को अंतिम समय पर आमंत्रण भेजा गया। हालांकि प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) की ओर से अब तक इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। भारत की ओर से यह पहले ही तय है कि विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह इस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। अगर पीएम मोदी मिस्र जाने का फैसला करते हैं, तो यह भारत की मध्य पूर्व शांति प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी का बड़ा संकेत होगा।
भारत लंबे समय से शांति, संयम और संवाद का समर्थन करता रहा है। भारत के इजरायल और फिलिस्तीन दोनों से सौहार्दपूर्ण संबंध हैं, जिससे इस प्रक्रिया में उसकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
मिस्र का शर्म अल शेख एक विश्व प्रसिद्ध रिसॉर्ट शहर है, जो अंतरराष्ट्रीय बैठकों और कूटनीतिक आयोजनों के लिए जाना जाता है। गाजा शांति समझौते के कार्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, ब्रिटेन, फ्रांस, सऊदी अरब, जॉर्डन, और यूएई के प्रमुख नेता भी शामिल होंगे।
इस सम्मेलन का उद्देश्य गाजा में युद्धविराम को स्थायी बनाना, बंधकों की रिहाई सुनिश्चित करना और पुनर्निर्माण की दिशा तय करना है।
गाजा में लंबे समय से इजरायल और हमास के बीच संघर्ष चलता आ रहा है। हजारों लोगों की मौत, लाखों विस्थापित और भारी तबाही के बाद अब दोनों पक्ष शांति की दिशा में कदम बढ़ाने को तैयार हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसके लिए 20 सूत्रीय शांति योजना पेश की है, जिसमें मुख्य बिंदु शामिल हैं-
हालांकि, हमास ने इस समझौते को लेकर कड़ी आपत्ति जताई है। संगठन ने ट्रंप की योजना को “बेतुका” बताते हुए कहा कि वे हथियार नहीं छोड़ेंगे और गाजा से पीछे नहीं हटेंगे। वहीं, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भी पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं। वे चाहते हैं कि हमास को निष्क्रिय करने की गारंटी पहले दी जाए, तभी इजरायल समझौते पर पूरी तरह अमल करेगा।
भारत का कूटनीतिक संतुलन इस पूरी प्रक्रिया में पुल की तरह है। एक ओर इजरायल के साथ मजबूत रक्षा और तकनीकी संबंध, दूसरी ओर फिलिस्तीन को मानवीय और विकास सहायता। भारत की शांतिपूर्ण कूटनीति और संवाद नीति के कारण विश्व समुदाय भी इस प्रक्रिया में भारत के रुख को निर्णायक मान रहा है।