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Manisha Dhanwani
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Naresh Bhagoria
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नई दिल्ली। उन्नाव रेप केस में दोषी ठहराए जा चुके पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें सेंगर की उम्रकैद की सजा निलंबित करते हुए सशर्त जमानत दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि मामले में कई गंभीर कानूनी सवाल हैं, जिन पर विस्तार से सुनवाई जरूरी है। कोर्ट ने चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं और तब तक सेंगर की रिहाई पर रोक रहेगी।
सोमवार को चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली वेकेशन बेंच सीबीआई की याचिका पर सुनवाई की। बेंच में जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे। सीबीआई ने दिल्ली हाईकोर्ट के 23 दिसंबर 2025 के आदेश को चुनौती दी थी। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि, यह नाबालिग से जुड़ा बेहद भयावह रेप का मामला है, जिसमें नाबालिग पीड़िता शामिल है। उन्होंने दलील दी कि-
सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने सजा निलंबन के दौरान कुछ महत्वपूर्ण कानूनी पहलुओं पर पर्याप्त विचार नहीं किया। खासतौर पर पॉक्सो कानून की धारा 42A, जिसमें कहा गया है कि यदि पॉक्सो और किसी अन्य कानून में टकराव हो तो पॉक्सो को प्राथमिकता दी जाएगी, उस पर हाईकोर्ट के आदेश में स्पष्ट चर्चा नहीं दिखती। कोर्ट ने यह भी कहा कि, आरोपी पहले से ही एक अन्य मामले में दोषी है और जेल में बंद है, इसलिए यह मामला सामान्य जमानत मामलों से अलग है।
चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि, आम तौर पर किसी व्यक्ति को रिहा किए जाने के बाद बिना सुने उसकी आज़ादी छीनी नहीं जाती, लेकिन इस केस में परिस्थितियां अलग हैं। आरोपी पहले से एक अन्य मामले में सजा काट रहा है। CJI ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट के जज देश के बेहतरीन जजों में गिने जाते हैं, लेकिन गलती किसी से भी हो सकती है। अदालत कानून से जुड़े गंभीर सवालों पर विचार करना चाहती है।
सुनवाई के दौरान यह सवाल भी उठा कि, क्या पीड़िता के नाबालिग होने की स्थिति में आरोपी के ‘लोक सेवक’ होने या न होने का सवाल प्रासंगिक है। सॉलिसिटर जनरल ने दलील दी कि नाबालिग से जुड़ा यौन अपराध अपने आप में एक स्वतंत्र और गंभीर अपराध है। संशोधित कानून ने सजा को और कठोर बनाया है, जो विधायिका की मंशा को दर्शाता है कि ऐसे अपराधों को समाज के खिलाफ गंभीर अपराध माना जाना चाहिए।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 दिसंबर को सेंगर की सजा निलंबित करते हुए जमानत दी थी। जिसमें शर्त रखी गई थी कि वह पीड़िता से 5 किलोमीटर दूर रहेगा, दिल्ली नहीं छोड़ेगा, हर हफ्ते पुलिस स्टेशन में हाजिरी देगा और पासपोर्ट जमा करेगा। इस फैसले के बाद पीड़िता और उसका परिवार नाराज था और दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर प्रदर्शन कर रहा था। महिला कांग्रेस कार्यकर्ताओं और सामाजिक संगठनों ने भी विरोध प्रदर्शन किए।
यह मामला साल 2017 का है, जब उन्नाव जिले की एक नाबालिग लड़की ने तत्कालीन विधायक कुलदीप सेंगर पर रेप का आरोप लगाया था। आरोपों के बाद पीड़िता और उसके परिवार को लंबे समय तक धमकियों और दबाव का सामना करना पड़ा। पीड़िता के पिता की पुलिस हिरासत में मौत, गवाहों को प्रभावित करने और सड़क हादसे में पीड़िता की रिश्तेदारों की मौत ने इस केस को देशभर में सुर्खियों में ला दिया। 2019 में दिल्ली की ट्रायल कोर्ट ने सेंगर को रेप का दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
4 जून 2017: नाबालिग पीड़िता से रेप
2018: पीड़िता के पिता की हिरासत में मौत
2019: दिल्ली की ट्रायल कोर्ट ने सेंगर को उम्रकैद
2025: हाईकोर्ट ने सजा निलंबित की
2025: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट आदेश पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि चार हफ्तों के भीतर सभी पक्ष अपने जवाब दाखिल करेंगे। तब तक दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर रोक जारी रहेगी और कुलदीप सेंगर की रिहाई नहीं होगी। अदालत ने संकेत दिए हैं कि इस मामले में कानून की व्याख्या और सजा से जुड़े अहम प्रश्नों पर विस्तृत सुनवाई होगी।