Manisha Dhanwani
29 Dec 2025
Naresh Bhagoria
28 Dec 2025
जयपुर। अरावली पर्वतमाला के विवाद पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने आदेश दिया है कि विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें और उन पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई आगे की टिप्पणियां फिलहाल स्थगित रहेंगी। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि अगली सुनवाई तक इन सिफारिशों को लागू नहीं किया जाएगा। वहीं इस मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी 2026 को होगी।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से कहा कि इस मामले में अदालत के आदेशों, सरकार की भूमिका और पूरी प्रक्रिया को लेकर कई तरह की गलतफहमियां फैलाई जा रही हैं। उन्होंने बताया कि इन्हीं भ्रमों को दूर करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित की गई थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसे अदालत ने स्वीकार भी किया था।
वहीं सुनवाई में के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा कि भ्रामक गलफैहमियां को दूर करने के लिए ही एक विशेषज्ञ समिति गठित की गई थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंपी थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार भी किया। इस पर मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट और उसके आधार पर अदालत द्वारा की गई टिप्पणियों को लेकर गलत अर्थ निकाले जा रहे हैं।
CJI ने संकेत दिया कि इन भ्रांतियों को दूर करने के लिए स्पष्टीकरण जारी करने की आवश्यकता पड़ सकती है, ताकि अदालत की मंशा और निष्कर्षों को लेकर कोई भ्रम न रहे। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट या अदालत के फैसले को लागू करने से पहले एक निष्पक्ष और स्वतंत्र मूल्यांकन जरूरी है, जिससे सभी अहम सवालों पर स्पष्ट दिशा तय की जा सके।
अरावली की परिभाषा को यदि केवल 500 मीटर के दायरे तक सीमित किया जाता है, तो इससे संरक्षण क्षेत्र सिमटने की संभावना ज्यादा है। कई ऐसे भू-भाग, जो पारिस्थितिक रूप से अरावली का हिस्सा हैं, वे कानूनी संरक्षण से बाहर हो सकते हैं। इसे संरचनात्मक विरोधाभास के रूप में देखा जा रहा है।
इस सीमित परिभाषा का असर यह भी हो सकता है कि बड़ी संख्या में इलाके नॉन-अरावली घोषित हो जाएं। ऐसे क्षेत्रों में नियमों के तहत नियंत्रित खनन की अनुमति का दायरा बढ़ सकता है, जिससे अरावली के आसपास खनन गतिविधियां तेज होने की संभावना है।
यदि दो अरावली क्षेत्र 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचे हैं और उनके बीच करीब 700 मीटर का अंतर है, तो मौजूदा तकनीकी परिभाषा के अनुसार उस गैप वाले हिस्से में नियंत्रित खनन की अनुमति दी जा सकती है। हालांकि, इससे दोनों अरावली क्षेत्रों के बीच प्राकृतिक और पारिस्थितिक संपर्क प्रभावित हो सकता है।
इस पूरी प्रक्रिया में सबसे बड़ी चुनौती पारिस्थितिक निरंतरता को बनाए रखने की है। विशेषज्ञों का मानना है कि अरावली को अलग-अलग टुकड़ों में नहीं, बल्कि एक सतत पारिस्थितिक प्रणाली के रूप में देखा जाना चाहिए।
इसके लिए गैप वाले इलाकों को इकोलॉजिकल बफर या कॉरिडोर घोषित करने, स्वतंत्र पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) को अनिवार्य बनाने और वैज्ञानिक आधार पर परिभाषा की पुनर्समीक्षा करने की जरूरत पर जोर दिया जा रहा है।