Aakash Waghmare
17 Nov 2025
बाला साहेब ठाकरे (1926–2012) महाराष्ट्र के एक बहुत ही मशहूर और प्रभावशाली नेता थे। उन्होंने शिवसेना नाम की पार्टी बनाई और मराठी लोगों के हक के लिए आवाज उठाई। राजनीति में आने से पहले वे एक कार्टूनिस्ट के रूप में काम करते थे। उनकी साफ-साफ बोलने की आदत और मजबूत व्यक्तित्व की वजह से लोग उन्हें बहुत पसंद करते थे। उन्होंने हिंदुत्व की राजनीति को आगे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई। 2012 में उनके निधन के बाद भी लोग उन्हें सम्मान और प्यार के साथ याद करते हैं।
बाला साहेब ठाकरे भारतीय राजनीति का वह चेहरा थे जिन्होंने अपनी आवाज, विचार और व्यक्तित्व से लाखों लोगों को प्रभावित किया। वे एक ऐसे नेता थे जो मंच पर जितने तीखे थे, अपने लोगों के लिए उतने ही नरम दिल भी। शिवसेना की स्थापना से लेकर जनता के बीच उनकी पकड़ तक- उन्होंने महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया अध्याय लिखा।
उनका जन्म 23 जनवरी 1926 को पुणे में हुआ। पिता प्रभोदंकर ठाकरे एक समाज सुधारक और लेखक थे, जिन्होंने बाला साहेब को समाज की समस्याओं को समझने और उसके लिए आवाज उठाने की प्रेरणा दी। माँ रामाबाई बहुत शांत और संस्कारी थीं। बचपन से ही बाला साहेब बेहद अवलोकनशील और कला में रुचि रखने वाले थे- यही गुण आगे चलकर उनके व्यक्तित्व की पहचान बने।
स्कूल खत्म होने के बाद उन्होंने पढ़ाई से ज्यादा कलात्मक रुचियों पर ध्यान दिया। वे घंटों बैठकर कार्टून बनाते थे- उनके कार्टून सिर्फ चित्र नहीं थे, उनमें तीखे संदेश छिपे रहते थे। मुंबई के फ्री प्रेस जर्नल में कार्टूनिस्ट के रूप में उनका करियर शुरू हुआ, जहाँ उनके बनाए व्यंग्य कार्टून बहुत लोकप्रिय हुए। समाज की कड़वी सच्चाइयों को हल्के-फुल्के व्यंग्य में दिखाने की उनकी कला बेमिसाल थी।
कुछ समय बाद उन्होंने अपनी तरह से लिखने और बोलने के लिए स्वतंत्र राह चुनी और साप्ताहिक मर्मबंध शुरू किया। बाद में मराठी अखबार मराठा के जरिये वे हर घर तक पहुंचने लगे। उनकी कलम बेबाक थी- न किसी का डर, न किसी की चापलूसी। समाज की कमियों पर वे सीधे चोट करते थे, और यही उन्हें आम जनता के बीच लोकप्रिय बनाता था।
1966 वह साल था जब बाला साहेब ने मुंबई में शिवसेना की स्थापना की। मकसद था- मराठी लोगों के हक की रक्षा, स्थानीय युवाओं को रोजगार, और मराठी संस्कृति की पहचान बचाना। मुंबई में बढ़ते बाहरी राज्यों के प्रभाव से स्थानीय युवाओं में असंतोष था, और बाला साहेब ने इस दर्द को आवाज दी। उनकी सरल लेकिन दमदार भाषा, अनोखी शैली और बिना झिझक बोले गए विचारों ने शिवसेना को तेजी से मजबूत बनाया।
बाला साहेब का भाषण किसी तूफान से कम नहीं होता था। वे मंच पर आते ही भीड़ में ऊर्जा भर देते थे। उनके शब्दों में एक अलग ही ताकत थी- सीधे, तेज, लेकिन लोगों की भावनाओं तक पहुंचने वाले। हिंदुत्व को लेकर उनके विचार बेहद स्पष्ट थे। वे अपने समर्थकों को कभी भ्रमित नहीं करते थे, और शायद यही कारण है कि लोग उन पर आंख बंद करके भरोसा करते थे।
उनकी पत्नी मीना ठाकरे उनके जीवन की सबसे बड़ी ताकत थीं- एक शांत, सरल और समझदार साथी। उनके तीन बच्चे हुए उद्धव, जयदेव, और बिंदु। बाद में उद्धव ठाकरे ने उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। बाला साहेब का परिवार हमेशा उनके अत्यधिक व्यस्त और संघर्षपूर्ण जीवन में स्थिरता का आधार रहा।
लंबी बीमारी से लड़ते-लड़ते बाला साहेब का निधन 17 नवंबर 2012 को मुंबई के मातोश्री निवास पर हुआ। उनकी अंतिम यात्रा में उमड़ा जनसागर किसी नेता का नहीं, बल्कि एक युग–पुरुष का सम्मान था। पूरा महाराष्ट्र ठहर गया था- जैसे सभी अपनी पहचान के एक बड़े हिस्से को खो रहे हों।
बाला साहेब केवल एक नेता नहीं, एक सोच थे- एक आवाज, जिसने लाखों लोगों की जिंदगी में दिशा दी।
उनकी राजनीति, उनकी बेबाकी और उनका व्यक्तित्व आज भी महाराष्ट्र की संस्कृति और राजनीति में जड़ें जमाए हुए हैं। उनकी बनायी शिवसेना, उनकी शैली, और उनका प्रभाव आज भी उतना ही मजबूत है जितना उनके जीवनकाल में था।