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Naresh Bhagoria
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Aditi Rawat
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आजकल लोग अपनी गाड़ियों पर भगवान के नाम या पवित्र मंत्र लिखवाने लगे हैं, जैसे- ‘ऊँ नमः शिवाय’, ‘जय श्रीराम’, ‘श्रीकृष्ण’ या ‘जय माता दी’। कई लोगों को यह भक्ति का तरीका लगता है, लेकिन वास्तव में यह हमेशा उचित नहीं माना गया। इसी बारे में वृंदावन-मथुरा के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज से एक भक्त ने सवाल किया कि क्या वाहन पर मंत्र लिखवाना सही है। इस पर महाराज जी ने बहुत ही सुंदर और प्रेरणादायक संदेश दिया।
प्रेमानंद महाराज ने कहा कि गाड़ियों या घरों पर मंत्र लिखवाना पवित्र शब्दों का अपमान है। मंत्र केवल हृदय में बसाने योग्य होते हैं, न कि सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए। आजकल लोग फिल्मों और मंचों पर मंत्रों का उच्चारण कर रहे हैं, जो सही परंपरा नहीं है।
मंत्र तभी सिद्ध होता है जब इसे भीतर से जपा जाए और मन में निरंतर गूंजे। साधना का उद्देश्य केवल दिखावा नहीं, बल्कि आत्मिक उन्नति होना चाहिए। केवल दिखावे के लिए किया गया जप तप नहीं बल्कि भ्रम है।
मंत्र जपने से पहले गुरु से दीक्षा लेना आवश्यक है। शुद्ध स्थान, पवित्र आसन और उचित वस्त्र पहन कर ही जप करना चाहिए। महाराज ने स्पष्ट किया कि मंत्र कीर्तन नहीं है, जबकि भगवान के नाम का कीर्तन खुलकर किया जा सकता है।
महाराज जी के अनुसार मंत्र दो प्रकार के होते हैं: उपांशु और मानसिक। नाम या ईश्वर के स्मरण को तीन तरीकों से जपा जाता है: वाचिक, उपांशु और मानसिक। शास्त्रीय विधियों का पालन किए बिना साधना केवल विकार बढ़ाती है।
केवल शुद्ध मन और हृदय वाले व्यक्ति को ईश्वर का साक्षात्कार प्राप्त होता है। बिना नियमों और शुद्धि के साधना केवल दिखावा है और इससे लाभ नहीं होता।