बहुत सारे कपल्स सब कुछ होने के बाद भी किसी न किसी तरह के तनाव से गुजर रहे हैं। कई बार सब ठीक होने के बाद भी ओवरथिंकिंग और छोटी-छोटी बातों के बड़े मुद्दे बन जाने पर रिश्ते दर्द देने लगते हैं और चाहकर भी उन्हें ठीक करना मुश्किल लगता है। इसी तरह परिवार में भी कुछ सदस्य बात-बेताक तुनक मिजाज होते दिखते हैं लेकिन कोई हल नजर नहीं आता। ऐसी स्थिति में साइकॉलोजिस्ट भी लोगों को मेडिटेशन की प्रक्रिया से गुजरने की सलाह देते हैं, लेकिन शांत होकर बैठना भी कोई आसान बात नहीं है। ध्यान में बैठना भी लोगों को खासा मुश्किल भरा लगता है तो आखिर इसकी शुरुआत किस तरह की जाए कि पारिवारिक संबंधों में इसके जरिए राहत लाई जा सके। गाइडेड मेडिटेशन में ग्रुप में बैठकर इसकी शुरुआत की जा सकती है।
ध्यान को उनकी अभ्यास विधि के अनुसार चार प्रमुख प्रकारों में बांटा जा सकता है,, जिसमें देखना, सुनना, श्वास लेना और आंखें बंद करके मौन होकर सोच पर ध्यान केंद्रित करना। ध्यान के तरीके भी अलग-अलग है, माइंडफुल मेडिटेशन, आध्यात्मिक ध्यान, फोकस्ड मेडिटेशन, मूवमेंट मेडिटेशन, मंत्र ध्यान विधि, प्रोग्रैसिव रिलैक्सेशन, चित्र कल्पना ध्यान विधि आदि।
कई लोग मेडिटेशन की अवधारणा में विश्वास नहीं करते हैं लेकिन इससे कई कपल्स को रिश्ते की समस्याओं को दूर करने में मदद मिली है। ध्यान शांत चित्त को तनावपूर्ण स्थितियों से निपटने और बेहतर तरीके से अपनी चुनौतियों का सामना करने में मदद करता है। ध्यान आंतरिक शांति और खुशी देने के साथ ही क्षमा करने की शक्ति को बढ़ाता है और गुस्से को नियंत्रित करता है। -नीतू गौतम, योग व मेडिटेशन एक्सपर्ट
गंभीर और गहरे जुड़ाव वाले संवाद के अभाव में रिश्ते बिखर जाते हैं। ऐसे में यह मेडिटेशन एक पुल की तरह काम करता है। कई लोगों को शुरुआत में यह कठिन महसूस होता है लेकिन इसके अभ्यास को बीच में न छोड़े बल्कि किसी अच्छे मेडिटेशन सेंटर पर जाकर प्रैक्टिस करें। कई बार अकेले मेडिटेशन करने में ध्यान भटकता है इसलिए किसी गुरु के संपर्क में रहकर उनके साथ गाइडेड मेडिटेशन करेंगे तो देखेंगे कि धीरे-धीरे धैर्य पैदा होने लगता है। जीवन में आंतरिक शांति का अहसास होने लगता है जिससे सकारात्मक माहौल तैयार होता है। हम कई लोगों को इसकी सलाह देते हैं जिनके जीवन में कलह की स्थिति रहती है। इसके अलावा जिन बच्चों को पढ़ाई के दौरान एकाग्रता की कमी महसूस होती है, उन्हें भी मेडिटेशन कराना चाहिए।-डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी, मनोचिकित्सक