Shivani Gupta
11 Dec 2025
अशोक गौतम
भोपाल। शहरों में मकान, फ्लैट, दुकान सहित अन्य प्रॉपर्टियों का जीआईएस सर्वे कराया जा रहा है। इसमें खुलासा हुआ है कि प्रदेश के नौ नगर निगम ऐसे हैं जहां 3.23 लाख संपत्तियों के मालिकों ने खाते ही नहीं खुलवाए थे। अब इन प्रॉपर्टी के मालिकों पर 153 करोड़ रुपए से अधिक की डिमांड निकाली गई है। मुरैना नगर निगम में सर्वे से पहले सिर्फ पच्चीस हजार प्रॉपर्टी रजिस्टर्ड थी। सर्वे के बाद 67 हजार प्रॉपर्टी चिह्नित की गई हंै। इंदौर में 1.43 लाख प्रॉपर्टियों का रजिस्ट्रेशन नहीं कराया गया था। निकायों ने संपत्ति मालिकों से प्रॉपर्टी टैक्स पेनल्टी सहित जमा करने के लिए कहा है। इनसे भवन अनुज्ञा के वर्ष से प्रॉपर्टी टैक्स वसूली की जाएगी। जहां प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन नहीं है, उनमें भोपाल, इंदौर, मुरैना, देवास, सागर, रीवा, जबलपुर, कटनी नगर निगम आदि शामिल हैं।
-ग्वालियर, उज्जैन सहित 7 नगर निगम में जीआईएस सर्वे का काम चल रहा है।
-सर्वे का काम एक साल के अंदर पूरा हो जाएगा।
-इसके बाद इन निकायों में डाटा सत्यापन का काम होगा।
-फिर बिना रजिस्ट्रेशन की संपत्तियों के मालिकों को डिमांड नोटिस जारी किया जाएगा।
-अभी तक के सर्वे और सत्यापन में इन निकायों में करीब एक लाख संपत्ति अनरजिस्टर्ड पाई गई हैं।
-इन निकायों में 6.61 लाख प्रापर्टी रजिस्टर्ड हंै।
इस सर्वे के बाद जिन्होंने अपनी प्रापर्टी का रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है, उन्हें डिमांड नोटिस भेजा गया है। उन्हें रजिस्ट्रेशन कराने के निर्देश दिए हैं। वहीं निकायों के मैदान अफसरों से कहा गया है कि इनकी प्रॉपर्टी आईडी बनाएं।
प्रदेश में बड़े नगर निगमों में तो संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन के मामले हैं ही, छोटे निकायों में स्थिति और खराब है। छोटे स्थानीय निकायों में लगभग 30 से 40 फीसदी संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन नहीं कराया गया है। इसमें प्रॉपर्टी टैक्स वसूली की स्थिति भी काफी खराब है। बताया जाता है कि सर्वे से पहले इन निकायों में आठ करोड़ रुपए वसूली की जानी थी, लेकिन सर्वे के बाद यहां डिमांड लगभग12 करोड़ रुपए हो गई है। हालांकि इन निकायों में भी अभी पूरी तरह से सर्वे का काम नहीं हो पाया है।
अगर हम 1500 वर्गफीट की प्रॉपर्टी की बात करें तो औसतन 3 हजार रुपए सालाना टैक्स बनता है। इसमें प्रॉपर्टी, समेकित, शिक्षा उपकर, स्वच्छता उपाय के लिए किए जा रहे कामों के कर सहित अन्य टैक्स शामिल हैं। अगर हम 3.23 लाख संपत्तियों की बात करें तो सालाना ये आंकड़ा लगभग 96 करोड़ रुपए से ज्यादा पहुंचता है। इस तरह सिर्फ नौ नगर निगमों को ही इतना नुकसान हो रहा है, अन्य निकायों की राशि काफी बड़ी होगी।
निकायों में जीआईएस सर्वे का काम चल रहा है। इस सर्वे के बाद उनका भौतिक सत्यापन कर निकायों को डिमांड राशि वसूलने और नए सिरे से रजिस्ट्रेशन कराने के लिए निर्देश दिए गए हैं। निकाय अपने स्तर पर इनका सत्यापन बिजली बिल, पानी कनेक्शन, बिल्डिंग परमिशन अनुमति के माध्यम से सत्यापन कर वसूली कर सकते हैं।
संकेत भोंडवे, आयुक्त, नगरीय विकास एवं आवास विभाग