Shivani Gupta
10 Dec 2025
पल्लवी वाघेला, भोपाल। परीक्षा का नाम सुनते ही बुखार चढ़ जाना.., यह आम मुहावरा है, लेकिन इसका अर्थ गहरा है। हालांकि, इन दिनों एग्जाम के प्रेशर में बुखार चढ़ने के साथ ही बच्चे पेट की समस्याओं से भी जूझते नजर आ रहे हैं। ऐसे युवाओं की तादाद भी लगातार बढ़ रही है जिन्हें लंबे समय से एसिडिटी और कॉन्स्टिपेशन था, लेकिन उनकी इस समस्या की जड़ शारीरिक नहीं बल्कि मेंटल डिसऑर्डर से जुड़ी थी। शहर के मनोचिकित्सकों की मानें तो हर माह युवाओं से जुड़े ऐसे आठ से दस मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें वर्क-लाइफ बैलेंस के बीच तनाव से जूझ रहे युवा पेट की समस्याओं से परेशान है। वहीं, परीक्षा पास आते ही बच्चों के मामलों में तेजी से इजाफा हो रहा है।
शहर के मनोचिकित्सकों के पास लगातार ऐसे केस पहुंच रहे हैं जिनमें बच्चों और युवाओं ने जब पेट संबंधी समस्याओं की जांच कराई तो उन्हें आइबीएस (इरिटेबल बावेल सिंड्रोम) की समस्या बताई गई। दवाई से क्षणिक राहत ही मिली। दरअसल, यह सभी आइबीएस से नहीं बल्कि सोमेटोफॉर्म डिसऑर्डर से जूझ रहे थे और मनोचिकित्सकीय उपचार से इन्हें आराम भी मिला है।
गोविंद गार्डन निवासी 34 वर्षीय युवक बीते आठ साल से पेट की समस्याओं से परेशान था। उसे कभी भी डायरिया-कब्ज या ब्लोटिंग होने लगती थी। उसने इन सालों में अनेक डॉक्टर्स से सलाह ली लेकिन उसे आइबीएस (इरिटेबल बावेल सिंड्रोम) बताकर दवाएं दी गई। पत्नी की सलाह पर वह उनकी मनोविज्ञानी दोस्त से मिला। कुछ महीनों के मनोचिकित्सकीय ट्रीटमेंट के बाद अब वह ठीक है।
अरेरा कॉलोनी निवासी अभिभावक अपने फैमिली डॉक्टर की सलाह पर 12वीं में पढ़ रही बेटी को लेकर मनोचिकित्सक के पास पहुंचे। उनकी बेटी बीते तीन साल से पेट संबंधी समस्या से जूझ रही थी। खासकर परीक्षा के समय समस्या बढ़ जाती थी। किशोरी ने बताया कि मौसेरा भाई टॉपर है। उस पर भी भाई की बराबरी करने का दबाव है। परीक्षा पास आते ही उसे लगता है कि कम नंबर आए तो घरवाले, रिश्तेदार सब क्या कहेंगे? किशोरी का ट्रीटमेंट जारी है।