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अपने नाती-पोतों के पहले दोस्त और गाइड की भूमिका निभाकर संस्कार दे रहे ग्रैंड पैरेंट्स, आज है उनके सम्मान का दिन

अनुज मैना

भोपाल। बदलते समय में एक ओर जहां पैरेंट्स वर्क लाइफ में व्यस्त है, वहीं दूसरी ओर ग्रैंड पैरेंट्स बच्चों के पहले दोस्त, गाइड और संरक्षक की भूमिका निभा रहे हैं। वक्त बदला है, लेकिन कुछ रिश्ते आज भी वक्त से परे हैं। दादा-दादी और नाना-नानी न सिर्फ बच्चों के पहले दोस्त होते हैं, बल्कि वे उनके जीवन के पहले शिक्षक की भी भूमिका निभाते हैं। हर साल 7 सितंबर को मनाया जाने वाला ग्रैड पैरेंट्स-डे इन्हीं अनमोल रिश्तों के सम्मान का दिन है। पीपुल्स समाचार ने इस रिश्ते के बारे में ग्रैंड पैरेंट्स से बात की तो उन्होंने अपने नाती-पोतों के साथ अपने रिश्ते, उनके साथ बिताए पलों, उनके जीवन में अपनी भूमिका पर विस्तार से बात की। उन्होंने बताया कि कैसे नाती-पोतों के रूप में उनके जीवन में आए इन नन्हें फरिश्तों ने जीवन की उत्तरावस्था में उनके जीवन को सार्थक बना दिया है।

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बच्चों को गले लगाकार मिलता है सुकून 

पुरातत्व विद बीके लोखंडे बताते हैं कि मेरी बेटी अपने बच्चे विहान और पाखी के साथ पुणे में रहती है। मैं उनसे मिलने के लिए जैसे ही उनके पर पहुंचा, तो वे मुझे देखते ही दौड़कर आए और गले लग गए। बच्चों को यूं गले लगाकार मन को बेहद सुकून मिलता है। अभी उनकी स्कूलिंग की शुरुआत है। ये टेक्नोलॉजी के युग के बच्चे हैं, लेकिन हमारी कोशित रहती है कि इन्हें अच्छे संस्कार भी दें, ताकि वे लोगों के साथ कनेक्ट रहें। हम इन्हें संयुक्त परिवार का महत्व भी बताते हैं। समझाते हैं कि जीवन में माता-पिता, भाई-बहन, दादा-दादी और नाना-नानी की कितनी अहमियत है। उन्हें देश प्रेम की अहमियत भी बताते हैं। हम कोशिश करते है कि वे अपनी संस्कृति के साथ भी जुड़े रहें।

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देशभक्ति को लेकर कर रहे अवेयर

रिटायर्ड प्लांट असिस्टेंट ग्रेड-1 नामदेव राउत ने कहा मेरा पोता शार्विक योगेश राऊत अभी चार साल का है। जब भी यह कुछ क्रिएटिव करता है, तो उससे मेरे दिल को सुकून मिलता है। वह गूगल पर कई चीजे सर्च कर लेता है। हम उसे देश की सेवा को लेकर भी अवेयर करते है। अपनी संस्कृति और धर्म से जोड़े रखने के लिए त्योहारों और पर्वों में शामिल करते है और उनका महत्व बताते हैं। इस उम्र में अब कोई और काम तो है नहीं। इस लिए पोते पर ही पूरा फोकस रहता है। मेरे पास जीवन का लंबा अनुभव है और वह अभी जीवन के शुरूआती पाठ सीख रहा है। यही वजह है हम एक दूसरे के लिए बेहद जरूरी बन गए हैं।

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यह मेरे दूसरे बचपन की शुरुआत

कारोबारी प्रकाशनारायण विश्वकर्मा उत्साहर से बताते हैं, मेरे लिए मेरा पोता अदांश एक बच्चा नहीं, बल्कि मेरे दूसरे बचपन की शुरुआत है। जब वह सवाल पूछता है, तो लगता है जैसे जिंदगी फिर से शुरू हो रही है। मैं उसे रोज छोटी बाते सिखाता है, जैसे नमस्ते करना, पेड़ लगाना या बुजुर्गों की इज्जत करना। ये बातें किताबों से नहीं, बल्किा जीवन से सीखनी पड़ती हैं।

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Aniruddh Singh
By Aniruddh Singh
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