Manisha Dhanwani
1 Nov 2025
Manisha Dhanwani
1 Nov 2025
Mithilesh Yadav
31 Oct 2025
पल्लवी वाघेला
भोपाल। गुलमोहर कॉलोनी निवासी मयंक सिंह बताते हैं...मेरी मम्मी को एक ही शौक था साड़ियों का। हमेशा कहा करती थीं कि जब मुझे अंतिम विदाई दो, तब भी खूबसूरत कलरफुल साड़ी पहनाकर तैयार करना। लेकिन कोरोना में उनका अंतिम संस्कार पीपीई बैग में किया गया। हम उन्हें न मुखाग्नि दे पाए और न आखिरी बार देख पाए। अब पितृपक्ष में हर साल भोजन कराने के साथ ही अलग-अगल वृद्धाश्रम में बुजुर्ग माताओं को अपनी क्षमता अनुसार साड़ी बांटता हूं। यह मेरे मन की टीस को कम करता है।
गुलमोहर कॉलोनी निवासी मयंक सिंह की तरह अनेक लोग ऐसे हैं जिन्हें कोविड में अपने परिजनों के अंतिम दर्शन भी नसीब नहीं हुए। अब वह वृद्धजनों के साथ समय बिताकर, पितृपक्ष में उन्हें भोजन करा के और परिजन की पसंदीदा चीजें दान करके शांति पाने का प्रयास कर रहे हैं। वृद्धाश्रमों में एडवांस बुकिंग हो चुकी है। विभिन्न वृद्धाश्रम में ऐसे कई लोग बुकिंग करा चुके हैं, जिन्होंने कोविड काल में अपनों को खोया है।
वृद्धाश्रमों के संचालकों के मुताबिक अब लोग पितरों की शांति के लिए ब्राह्मण की जगह वृद्धाश्रम भोज को तरजीह दे रहे हैं। इस साल भी विभिन्न वृद्धाश्रमों में 54 लोग बुकिंग करा चुके हैं।
पैकेज भी: आनंदधाम वृद्धाश्रम के रवि सुरंगे ने बताया कि उनके यहां अल्पाहार 1500 रु., लंच 3 हजार रु., अन्नपूर्णा पैकेज जो पूरे दिन के भोजन का होता है इसके 6 हजार रुपए हैं। यहां 26 बुजुर्ग रहते हैं।
तय है मैन्यूः कमल बसंत वृद्धाश्रम में 12 बुजुर्ग रहते हैं। यहां तय मेन्यू बनाकर लाने का सिस्टम है। यह संभव नहीं है तो मैन्यू के अनुसार 2500 से 3000 रुपए भोजन के जमा करने होते हैं।
खुद परोसते हैं खाना: अपना घर में चार हजार में एक वक्त और 6 हजार में पूरे दिन के भोजन की व्यवस्था है। यहां 24 बुजुर्ग रहते हैं, लोग खाना खुद परोसना पसंद करते हैं।
हर तरह की सेवाः आसरा वृद्धाश्रम की केयरटेकर समीना मसीह ने बताया कि यहां 80 बुजुर्ग रहते हैं। यहां 5 हजार रुपए में भोजन करा सकते हैं।
मेरे हसबैंड हमेशा कहते थे कि आज के समय में वृद्धजन बेहद अकेले हो गए हैं। वह अक्सर वृद्धाश्रम जाकर समय बिताते थे। उनकी मृत्यु के बाद अब मैं जाने लगी हूं। खासकर उनसे जुड़े सभी स्पेशल दिन। जब वृद्धाश्रम के साथियों के साथ समय बिताती हूं, तो मुझे बहुत सुकून मिलता है। पितृपक्ष में यह सिलसिला रोज चलता है।
रमा त्रिवेदी, निवासी अरेरा कॉलोनी
कोविड में पूरा परिवार क्वारंटाइन था। पापा की स्थिति गंभीर थी, वह चिरायु में भर्ती थे। आखिरी पलों में उनसे बस फोन पर ही बात हो पाई। उन्हें लग रहा था कि कोई साथ होता तो अच्छा था। अब कोशिश है कि समय-समय पर वृद्धाश्रम या बच्चों के आश्रम जाकर उनके साथ वक्त बिताऊं। पितृपक्ष में वृद्धाश्रम ले जाने के लिए कोई चीज अपने हाथों से जरूर बनाता हूं।
अरविंद सक्सेना, निवार्सी चूना भट्टी
पितृपक्ष में वृद्धाश्रम में अपनी पत्नी की याद में उसकी पसंद की बालूशाही खिलाकर वृद्धजन से आशीर्वाद लेता हूं। अब तो चार साल की बेटी भी साथ जाने लगी है।
विशाल तिवारी, जहांगीराबाद