
नई दिल्ली। 7 जून 2025 को देशभर में ईद-उल-अजहा यानी बकरीद का पर्व बड़े उत्साह और धार्मिक आस्था के साथ मनाया जा रहा है। मस्जिदों और ईदगाहों में नमाज अदा की गई। जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल तक मुस्लिम समाज के लोगों ने ईद की नमाज अदा की और एक-दूसरे को गले लगाकर ईद मुबारक कहा।
भोपाल में हजारों लोगों ने पढ़ी नमाज
राजधानी भोपाल में भी बकरीद पूरे श्रद्धा और शांति के माहौल में मनाई गई। शहर की ऐतिहासिक ईदगाह में शहरकाजी मुश्ताक अली नदवी और ताजुल मसाजिद में मौलाना हस्सान साहब ने नमाज पढ़ाई। नमाज के बाद मुल्क की सलामती, अच्छी बारिश, बीमारों की शिफा और फिलिस्तीन के लोगों की हिफाजत के लिए दुआ की गई।
भोपाल के शहरकाजी मुश्ताक अली नदवी ने नमाज के बाद अमन-चैन, इंसाफ, अच्छी बारिश और देश की तरक्की के लिए दुआ मांगी। वहीं मौलाना हस्सान साहब ने समाज को सूफी परंपरा, ऋषियों-मुनियों और बुजुर्गों की मोहब्बत भरी राह पर चलने की नसीहत दी।
पुलिस-प्रशासन अलर्ट
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कई राज्यों में प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद है। मस्जिदों और ईदगाहों के आसपास सुरक्षा के खास इंतजाम किए गए हैं। कई शहरों में ड्रोन के जरिए निगरानी की जा रही है ताकि त्योहार शांतिपूर्ण ढंग से मनाया जा सके।
पीएम मोदी ने दी बकरीद की शुभकामनाएं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मौके पर देशवासियों को ईद-उल-अजहा की बधाई दी। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा- यह पावन अवसर हमारे समाज में सौहार्द और शांति के बंधन को और मजबूत करे। सभी को अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि की शुभकामनाएं।
क्या है बकरीद का धार्मिक महत्व?
बकरीद को इस्लाम धर्म में ‘ईद-उल-अजहा’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है “कुर्बानी की ईद”। यह त्योहार हजरत इब्राहीम की उस भक्ति और त्याग की याद में मनाया जाता है, जब उन्होंने अल्लाह के आदेश पर अपने बेटे हजरत इस्माईल की कुर्बानी देने का फैसला किया था। लेकिन अल्लाह ने उनकी नीयत देखकर बेटे की जगह एक दुम्बा भेज दिया और बलिदान को स्वीकार किया।
कुर्बानी की परंपरा: बलिदान और इंसानियत का संदेश
बकरीद की सबसे प्रमुख रस्म होती है कुर्बानी। इस दिन मुस्लिम समाज के लोग बकरी, दुम्बा, ऊंट या भैंस जैसे जानवर की बलि देते हैं। कुर्बानी का मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है –
- गरीबों के लिए
- रिश्तेदारों और पड़ोसियों के लिए
- अपने परिवार के लिए
इस बंटवारे के जरिए समाज में एकता, समानता और इंसानियत का संदेश दिया जाता है।
तीन दिन तक दी जा सकती है कुर्बानी
बकरीद केवल एक दिन का त्योहार नहीं है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार जिलहिज्जा की 10वीं, 11वीं और 12वीं तारीख को कुर्बानी दी जा सकती है।
इस मौके पर लोग नए कपड़े पहनकर एक-दूसरे से गले मिले, मिठाइयां और तोहफे बांटे। बच्चों में खास उत्साह देखने को मिला। वहीं कई लोगों ने गरीबों को दान देकर त्याग और सेवा की परंपरा को निभाया।
बकरीद की 5 अहम बातें
- बकरीद को इस्लाम धर्म का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है।
- इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक यह त्योहार जुल-हिज्जा महीने की 10वीं तारीख को मनाया जाता है।
- इस दिन सुबह नमाज अदा करने के बाद जानवर की कुर्बानी दी जाती है।
- जिनके पास 50 हजार रुपए या उससे ज्यादा की रकम या संपत्ति होती है, उनके लिए कुर्बानी देना जरूरी माना गया है।
- कुर्बानी का मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है- पहला गरीबों को, दूसरा रिश्तेदारों को और तीसरा अपने परिवार के लिए रखा जाता है।
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