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इंदौर – दिल्ली ब्लास्ट के बाद सामने आए महू कनेक्शन ने जवाद अहमद सिद्दिकी के पुराने कारनामों पर से पर्दा हटाना शुरू कर दिया है। आरोप है कि सिद्दिकी न केवल महू में 100 करोड़ का घोटाला कर हजारों लोगों को चूना लगा चुका था, बल्कि बाद में खोली गई अल फलाह यूनिवर्सिटी में भी कई विवादास्पद और संदिग्ध गतिविधियाँ संचालित करता रहा। बताया जाता है कि अल फलाह यूनिवर्सिटी परिसर में ऐसी घटनाएँ होती थीं जिनकी कल्पना भी मुश्किल है। मुस्लिम छात्राओं के साथ-साथ कई अन्य छात्राओं ने भी उन गतिविधियों पर आपत्ति जताई, जिनके बारे में अब खुलकर बातें सामने आ रही हैं। आरोप यह भी है कि यूनिवर्सिटी में न केवल हिंदू बल्कि सिख छात्राओं के धर्मांतरण की कोशिशें की जाती थीं, जो लंबे समय से दबे स्वर में चर्चा का विषय थीं।
यूनिवर्सिटी से जुड़े होस्टलों और कॉलेज परिसर में भारत–पाक मैचों के दौरान कई बार “पाकिस्तान जिंदाबाद” के नारे लगाए जाने की शिकायतें भी छात्रों द्वारा की गई थीं। कुछ छात्रों ने इस संबंध में प्रबंधन को लिखित रूप से भी अवगत कराया था, लेकिन कार्रवाई करने के बजाय प्रबंधन पर खानापूर्ति करने के आरोप लगते रहे। यह पूरा माहौल वर्षों तक विश्वविद्यालय की दीवारों के भीतर पनपता रहा, पर सार्वजनिक नहीं हो सका। जवाद सिद्दिकी की कार्यशैली को लेकर यह सवाल भी उठता रहा कि वह एंटी-हिंदू सोच को बढ़ावा देता था या फिर किसी एक समुदाय विशेष को तरजीह देने की नीयत रखता था। छात्रों का कहना है कि कई गतिविधियाँ ऐसी थीं जो विश्वविद्यालय के वातावरण को भयभीत करने वाली बनाती थीं।
जवाद अहमद सिद्दिकी का नाम महू में पहले भी सुर्खियों में रहा है। उस पर 100 करोड़ के घोटाले का आरोप लगा था, जिसमें हजारों लोग प्रभावित हुए थे। लंबे समय तक वह फरार माना गया और महू के लोगों के लिए गुमशुदा-सा हो गया था। लेकिन दिल्ली ब्लास्ट के बाद उसका नाम फिर चर्चा में आने से स्थानीय लोगों में यह विश्वास मजबूत हुआ है कि जिस ठगी के पैसों से उसने लोगों को नुकसान पहुँचाया, उसी रकम का उपयोग कर उसने एक आलीशान अल फलाह यूनिवर्सिटी खड़ी की। स्थानीय सूत्रों का कहना है कि दिल्ली ब्लास्ट के बाद सामने आए कई पहलुओं ने इस पूरे मामले पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनकी जांच अब आवश्यक हो गई है।