Naresh Bhagoria
7 Nov 2025
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6 Nov 2025
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Shivani Gupta
6 Nov 2025
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6 Nov 2025
प्रवीण श्रीवास्तव-भोपाल। गांधी मेडिकल कॉलेज से संबद्ध हमीदिया अस्पताल में हर साल मरीजों के पर्चे बनाने में ही 27 लाख से ज्यादा (5,544 पैकेट) पेपर खर्च होते हैं। प्रदेश के पुराने छह मेडिकल कॉलेजों की बात करें तो पर्चों पर हर साल 1.60 करोड़ से ज्यादा पेपर की जरूरत होती है। इतने पेपर के निर्माण के लिए प्रति वर्ष 2300 से ज्यादा पेड़ काटे जाते हैं। प्रदेश के 19 मेडिकल कॉलेज, 52 जिला अस्पताल सहित अन्य सरकारी अस्पतालों को जोड़ लें तो हर साल 25 हजार पेड़ अकेले पर्चे बनाने के नाम पर काटे जा रहे हैं। यदि प्रक्रिया ऑनलाइन हो जाए तो हर साल 25 हजार पेड़ों को बचाया जा सकेगा।
एक मरीज पर कितने काजग की जरूरत : ओपीडी से लेकर भर्ती होने तक और डिस्चार्ज टिकट बनाने तक के लिए 7 से 10 पेपर की जरूरत होती है। अन्य काम मिलाकर एक भर्ती मरीज पर कुल 15 से 18 पेपर लगते हैं।
कागज उद्योग से जुड़े रोशन मखीजा बताते हैं कि एक टन कागज बनाने के लिए 15 से 20 पेड़ लगते हैं। कोटेड पेपर का इस्तेमाल उच्च गुणवत्ता वाली प्रिंटिंग और मैगजीन के लिए होता है। इसके लिए ज्यादा पल्प की जरूरत होती है। एक टन मैगजीन के कागज के लिए 25 पेड़ लगते हैं। अस्पतालों में 75 जीएसएम का पेपर लगता है। इसके एक टन पेपर के लिए 20 पेड़ों की जरूरत होती है।
पेपर के निर्माण के लिए सिर्फ पेड़ ही नहीं काटे जाते, बल्कि पानी का नुकसान भी होता है। एक ए- 4 साइज कागज के लिए 10 लीटर पानी खर्च होता है। 1.6 करोड़ कागज के लिए हर साल 16 करोड़ लीटर से ज्यादा पानी खर्च होता है। ऑनलाइन व्यवस्था से पेड़- पानी बचा सकते हैं। - पर्यावरणविद् प्रो. विपिन व्यास, बायोसाइंस विभाग, बीयू
चिकित्सा शिक्षा विभाग ऑनलाइन प्रिस्क्रिप्शन पर काम कर रहा है। मरीज मोबाइल से क्यूआर कोड स्कैन कर पर्चा बना सकता है। आने वाले समय में प्रिस्क्रिप्शन, जांच सहित तमाम काम ऑनलाइन करने की कोशिश की जा रही है। - डॉ. एके श्रीवास्तव, संचालक, चिकित्सा शिक्षा विभाग