Mithilesh Yadav
11 Oct 2025
अनुज मैना
भोपाल। बारिश के मौसम में रिमझिम फुहारें जैसे ही धरती को छूती हैं, प्रकृति अपनी सबसे खूबसूरत परतें खोल देती है। बारिश में भीगी पहाड़ियां एवं गीली मिट्टी, मानो इतिहास और प्रकृति एक साथ सजीव हो उठे हों। ऐसे ही मौसम में भोपाल के कुछ यंगस्टर्स इतिहास के बारे में जानने के लिए जंगल की ओर निकल पड़े। वे आगे बढ़ते हुए रायसेन किले पहुंचे जहां जहां की पुरानी दीवारें और खामोश पत्थर अतीत की कहानियां सुनाने को आतुर थे। वहीं, दूसरी ओर कुछ लोगों ने कठौतिया के जंगलों की ओर रुख किया। ये यात्राएं थीं तो अलग-अलग, लेकिन उद्देश्य एक ही था... खुद को जड़ों से जोड़ना और धरती को बेहतर बनाना। यंगस्टर्स के बीच पिछले कुछ समय से नेचर वॉक और हेरिटेज साइट्स पर जाने का चलन बढ़ा है।
जंगल की गीली मिट्टी, हरे पत्तों पर ठहरी बूंदें और शांति से भरी हवा, कठौतिया ट्रैक एक साधारण ट्रैकिंग से कहीं अधिक था। अर्श फाउंडेशन की टीम ने वहां न सिर्फ ट्रैक किया, बल्कि जहां कम पेड़ थे, वहां सीड बॉल्स डालकर आने वाले समय में हरियाली का बीज बोया। 18 प्रतिभागियों ने शैल चित्रों और गुफाओं के जरिए आदिम जीवन की झलक देखी और यह महसूस किया कि पर्यावरण की रक्षा सिर्फ जिम्मेदारी नहीं, आत्मिक जुड़ाव भी है। वहीं, विदिशा के पास कागपुर की शांत और हरियाली से भरी पहाड़ी पर युवाओं ने प्राचीन मंदिर देखे। लगभग हर महीने यंगस्टर्स ग्रुप के साथ इस तरह की ट्रिप पर जा रहे हैं।
वर्किंग प्रोफेशनल शिवम गोहदिया बताते हैं हमने कठौतिया में स्थित शैल चित्रों और गुफाओं को भी देखा, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध हैं। इस आयोजन के माध्यम से टीम के सदस्यों ने न केवल जंगल देखा, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी अपना योगदान दिया। काम के बाद इस तरह का ब्रेक जरूरी है।
20 प्रतिभागियों की टीम ने न सिर्फ सीता तलाई के बौद्ध इतिहास को जाना, बल्कि रायसेन किले के स्थापत्य, जौहर की गाथा और परमारों से लेकर अकबर तक की हुकूमत के निशान भी महसूस किए। रायसेन किला जौहर के लिए भी जाना जाता है। इस दौरान लोककथाएं और इतिहास, इस मौसम में मानो और भी जीवंत हो उठे।
भोपाल से लगभग 75 किलोमीटर दूर विदिशा के कागपुर गांव में स्थित मंगला देवी मंदिर तक की इस रोड ट्रिप में डॉक्टर, आईटी प्रोफेशनल और युवा छात्रों ने भाग लिया। शिवाजी राय के नेतृत्व में इस टीम ने जाना कि यह मंदिर परमार काल का है और संभवत: भोपाल-विदिशा क्षेत्र का सबसे प्राचीन देवी मंदिर भी। बलुआ पत्थर से बने इस पूर्वाभिमुखी मंदिर के परिसर में एक प्राचीन मंडप भी बना हुआ है।