Shivani Gupta
16 Sep 2025
Shivani Gupta
15 Sep 2025
रियाद/इस्लामाबाद। सऊदी अरब और पाकिस्तान ने बुधवार को एक ऐतिहासिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते को "रणनीतिक पारस्परिक रक्षा समझौता" नाम दिया गया है। इसके तहत तय हुआ है कि यदि किसी एक देश पर हमला होता है तो इसे दोनों देशों पर हमला माना जाएगा। इस समझौते को क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिहाज़ से बड़ा कदम माना जा रहा है।
यह समझौता प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सऊदी अरब यात्रा के दौरान राजधानी रियाद स्थित अल-यमामा पैलेस में हुआ। क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान (MBS) ने उनका स्वागत किया और दोनों नेताओं की मौजूदगी में इस पर हस्ताक्षर किए गए।
संयुक्त बयान में कहा गया कि यह समझौता सिर्फ दोनों देशों की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए नहीं है, बल्कि इसका मकसद क्षेत्रीय और वैश्विक शांति में भी योगदान देना है। इसमें साफ कहा गया कि किसी भी बाहरी आक्रमण को दोनों देशों पर हमला माना जाएगा और उसके खिलाफ संयुक्त प्रतिरोध किया जाएगा।
सऊदी प्रिंस सलमान के साथ शहबाज शरीफ और पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसीम मुनीर।
समझौते के समय पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ विदेश मंत्री इशाक डार, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ, वित्त मंत्री मुहम्मद औरंगज़ेब, सूचना मंत्री अत्ताउल्लाह तारड़ और अन्य वरिष्ठ मंत्री मौजूद थे। पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसीम मुनीर भी इस मौके पर शरीक हुए।
दोनों देशों के बीच सुरक्षा साझेदारी करीब आठ दशकों से चली आ रही है। पाकिस्तान ने इसे भाईचारे, इस्लामी एकजुटता और साझा रणनीतिक हितों पर आधारित करार बताया। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि, यह समझौता रक्षा सहयोग को और विकसित करने और किसी भी संभावित खतरे का संयुक्त रूप से सामना करने की दिशा में अहम कदम है।
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों का मानना है कि यह समझौता औपचारिक "संधि" भले न हो, लेकिन इसे गंभीर रणनीतिक साझेदारी माना जा रहा है। कुछ विशेषज्ञों ने सवाल उठाया है कि, क्या इसमें गुप्त शर्तें (सीक्रेट क्लॉज) भी शामिल हैं और क्या यह संकेत है कि सऊदी अरब अब पूरी तरह अमेरिका की सुरक्षा गारंटी पर निर्भर नहीं रहना चाहता। इस समझौते पर अफगानिस्तान और इराक में अमेरिका के राजदूत रह चुके जलमय खलीलजाद ने भी बयान दिया है।
इससे पहले पाकिस्तान ने मुस्लिम देशों की बैठक में नाटो जैसी एक संयुक्त रक्षा फोर्स बनाने का सुझाव दिया था। उस समय पाकिस्तान के नेताओं ने कहा था कि, एक परमाणु शक्ति होने के नाते पाकिस्तान उम्माह (इस्लामी समुदाय) की सुरक्षा में अपनी जिम्मेदारी निभाएगा।
पाकिस्तान ने सऊदी अरब की तरह अमेरिका के साथ भी रक्षा समझौता किया था। हालांकि, यह समझौता 1979 में टूट गया। इससे पहले भारत और पाकिस्तान के बीच दो युद्ध हुए, लेकिन अमेरिका ने किसी भी युद्ध में पाकिस्तान को सीधी मदद नहीं दी।
कोल्ड वॉर के दौरान शुरुआत :
सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तान के PM शहबाज शरीफ।
1. ईरान की क्रांति
1979 में ईरान की इस्लामी क्रांति के बाद ईरान ने CENTO छोड़ दिया। इससे संगठन कमजोर हो गया।
2. पाकिस्तान की वापसी
12 मार्च 1979 को पाकिस्तान ने भी CENTO से बाहर निकलने का ऐलान किया।
कारण:
3. अमेरिकी प्रतिबंध
1979 में अमेरिका ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगा दिया और सैन्य सहायता रोक दी।