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मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार के दो साल पूरे हो चुके हैं।मध्यप्रदेश में 2023 विधानसभा चुनाव (2023 Assembley Election) के बाद सभी की निगाहें थीं, मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले शख्स पर, निगाहें उस चेहरे पर भी जो लगभग दो दशकों तक प्रदेश की बागडोर को संभाले रहा और उन सम्भावितों पर भी, जिनका ज़िक्र सड़कों से लेकर सभाओं तक में हो रहा था। नतीजे आए और भारतीय जनता पार्टी ने बहुमत हासिल कर लिया। इसके बाद हुआ एक चौंकाने वाला फैसला जो आज कई लोगों के लिए एक मजबूत राजनीतिक वास्तविकता बन चुका है। दो सालों की यह कहानी है उम्मीदों, आशंकाओं, बदलावों और उन फैसलों की, जिन्होंने आज मध्य प्रदेश की राजनीति का चेहरा बदल दिया है।

दिसंबर 2023—विधानसभा चुनाव के नतीजे आए और भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला। इसके बाद जब विधायक दल की बैठक हुई, तब पूरे राज्य में एक ही सवाल था—“मुख्यमंत्री कौन?” और हर किसी का जवाब एक ही—शिवराज सिंह चौहान। 17 साल का अनुभव, पूरे राज्य में लोकप्रियता, और एक मजबूत राजनीतिक आधार। ऐसे माहौल में जब अचानक डॉ. मोहन यादव का नाम सामने आया, तो सच कहें तो हर कोई हैरान रह गया था। क्योंकि यह उन कुछ मौकों में से एक था, जब पार्टी ने पारंपरिक नेतृत्व से हटकर एक बिल्कुल नए चेहरे पर दांव लगाया। लेकिन नेतृत्व जितना नया था, चुनौतियाँ उससे कहीं ज्यादा बड़ी थीं। कैबिनेट में वरिष्ठ और बड़े नेताओं के बीच संतुलन बनाना…नई टीम को दिशा देना और इन सबके बीच अपनी खुद की पहचान भी बनाना—ये आसान नहीं था।
शुरुआत के महीनों में लगातार एक ही बात सुनने में आती थी, जैसे कि सीएम बदलने वाले हैं…दिल्ली नाराज़ है…यह बस अस्थायी व्यवस्था है। कई बार नाम भी उछलते थे, तारीखें भी बताई जाती थीं। लेकिन दो साल बाद, ये सारी बातें हवा हो गईं। यहां तक कि बिहार चुनाव में भाजपा–एनडीए के अच्छे प्रदर्शन ने भी मोहन यादव के नेतृत्व को मजबूती दी। पार्टी के भीतर जो सवाल थे, वे भी शांत हो गए। और सबसे बड़ी बात—आज वही वरिष्ठ नेता, जिनके अनुभव पर राज्य राजनीति टिकी है, वे डॉ. यादव के साथ तालमेल से काम कर रहे हैं।

मोहन यादव की सबसे बड़ी पहचान बनी, प्रशासनिक बदलाव… सालों से कहा जाता था कि प्रदेश में कुछ “चुने हुए अफसर” ही फैसले लेते हैं, और सिस्टम उसी लाइन पर चलता है। लेकिन मोहन सरकार ने यह पैटर्न तोड़ा। जिन जिलों में काम रुका हुआ था, वहां नए युवा अधिकारी लगाए गए। जिले की कमान उन लोगों को दी गई, जिनके पास उत्साह और ऊर्जावान सोच हो। वरिष्ठ अफसरों के साथ भी नए प्रणालीगत बदलाव लाए गए। इसका असर जमीनी स्तर पर दिख रहा है, फाइलें तेज़ी से बढ़ रही हैं, कामकाज में गति आई है और जिलों के स्तर पर निर्णय लेने की क्षमता बढ़ी है।
मध्य प्रदेश में इस समय कई बड़ी परियोजनाएँ एक साथ चल रही हैं। सबसे महत्वपूर्ण—केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट, जिसकी शुरुआत मध्य प्रदेश से हो रही है। यह प्रोजेक्ट न सिर्फ बुंदेलखंड को पानी देगा, बल्कि पूरे क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को बदलने की क्षमता रखता है। लंबे समय से पिछड़े हुए इस इलाके को मुख्यधारा के विकास से जोड़ना सरकार की प्राथमिकता है, और काम तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर के स्तर पर भी सड़कों, पुलों, इंडस्ट्रियल कॉरिडोर और स्मार्ट कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स में उल्लेखनीय तेजी आई है।
मोहन सरकार का कहना है कि एक साल में 75,000 युवाओं को सरकारी नौकरी दी गई। यह एक बड़ा आंकड़ा है, क्योंकि लंबे समय से सरकारी भर्ती का इंतजार करने वाले युवाओं के लिए यह राहत साबित हुआ।
निजी क्षेत्र में भी तस्वीर बेहतर होती दिख रही है। सात लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव आए, और सरकार के अनुसार दो लाख से ज्यादा युवाओं को निजी क्षेत्र में रोजगार मिला है। रोजगार के नए अवसर परोक्ष और प्रत्यक्ष दोनों स्तरों पर बन रहे हैं। यह सरकार के दो साल की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है।
किसानों के लिए सिंचाई सबसे बड़ा मुद्दा रहा है। सरकार का लक्ष्य है कि 2028 तक एक करोड़ हेक्टेयर जमीन सिंचाई के दायरे में हो। यदि यह लक्ष्य पूरा होता है, तो मध्य प्रदेश देश के उन राज्यों में शामिल होगा जहां सिंचाई की सुविधा सबसे अधिक है। इससे किसानों की आय बढ़ेगी, फसल की गुणवत्ता सुधरेगी और खेती का जोखिम कम होगा। ऊर्जा क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर दिया जा रहा है, जिससे ग्रामीण इलाकों में बिजली की उपलब्धता बेहतर हुई है।
पिछले वर्षों में मध्य प्रदेश में मेडिकल सुविधाओं में काफी सुधार हुआ है। आज प्रदेश में 25 से अधिक मेडिकल कॉलेज हैं। सरकारी अस्पतालों को सुपर स्पेशियलिटी सुविधाएँ दी जा रही हैं। यह खासकर ग्रामीण और आदिवासी बेल्ट के लिए बहुत महत्वपूर्ण बदलाव है।
मोहन यादव का सबसे बड़ा फोकस रहा धार्मिक पर्यटन। इसका प्रभाव देखने में आता है बीते वर्ष के तुलनात्मक आंकड़ों में, 2023 में उज्जैन में जहाँ सिर्फ 5 लाख पर्यटक आए थे, 2024 में यह संख्या 7 करोड़ हो गई! महाकाल महालोक बनने के बाद पर्यटकों की संख्या 20 गुना बढ़ गई। विदेशी पर्यटकों का आना भी बढ़ा है। राज्य में अब 12 नए “लोक” बनाए जा रहे हैं, जो मध्य प्रदेश को एक सांस्कृतिक–आध्यात्मिक हब में बदल सकते हैं।
सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है—प्रदेश की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाना। निवेश को जमीन पर उतारना, नए उद्योग लगाना और रोजगार को और तेजी से बढ़ाना आने वाले सालों में सबसे जरूरी काम होगा।
दो साल पहले जब मोहन यादव मुख्यमंत्री बने थे, तब बहुत से लोगों को संदेह था—क्या वो इतने बड़े पद पर टिक पाएंगे? दो साल बाद, वह संदेह काफी हद तक खत्म हो चुका है। काम की गति, प्रशासनिक बदलाव और धार्मिक पर्यटन के माध्यम से बनाया गया नया मॉडल—इन सबने उन्हें एक स्थापित नेतृत्व के रूप में सामने रखा है। आगे का रास्ता आसान नहीं, लेकिन दिशा स्पष्ट दिख रही है।