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इंदौर – दिल्ली ब्लास्ट की जांच में अब महू के बाद इंदौर का नाम भी जुड़ सकता है। आतंकी गतिविधियों से जुड़े माने जाने वाले जवाद अहमद सिद्दीकी के संबंध तेजी से सामने आ रहे हैं। माना जा रहा है कि जवाद ने बचपन से ही अपने पिता काजी हम्माद की परवरिश में कट्टरपंथी इस्लाम की शिक्षा पाई। काजी हम्माद, जो शहर काजी होने के साथ स्वयं भी कट्टर विचारों के माने जाते थे, उन्होंने अपनी कौम को आगे बढ़ाने के नाम पर पूरे परिवार में कट्टरता की जड़ें मजबूत कर दी थीं। जवाद के सभी भाई और बाकी परिवार भी इन्हीं विचारों से प्रभावित थे।
धीरे-धीरे जवाद के ताल्लुकात जमाते-इस्लामी-हिन्द से बढ़ने लगे। इसी दौरान देश में सिमी के आतंकी नेटवर्क का माहौल तेज हुआ, और जवाद की नज़दीकियां सिमी के कई सदस्यों से बढ़ती चली गईं। वह सिमी के कुख्यात आतंकी सफ़दर नागौरी से भी संपर्क में था। इसके अलावा वह सिमी से जुड़े अब्दुल रऊफ बेलिम, सईद अंसारी और अन्य कई लोगों के संपर्क में रहा। मुंबई ब्लास्ट के बाद जब सिमी के सफ़दर नागौरी का नाम प्रमुखता से सामने आया, तो जवाद ने सिमी से दूरी बनाने का दिखावा कर एक नए संगठन “तहरीके-तहफ़ूज-शायर-ए-इस्लाम” से जुड़ गया। जांच एजेंसियों को यह भी जानकारी मिली है कि जवाद भोपाल में होने वाली कई कट्टरपंथी बैठकों में हिस्सा ले चुका था। दिल्ली विस्फोट केस में उसकी भूमिका और संपर्कों की गुत्थी सुलझाने के लिए अब इंदौर में भी कई पहलुओं पर जांच तेज कर दी गई है।
इंदौर में भी कई कट्टरपंथियों से संपर्क में था –
जवाद महू के साथ-साथ कई बार इंदौर आकर अपनी कौम के कई कट्टरपंथियों से संपर्क में रहता था। कभी पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया), जो अब प्रतिबंधित इस्लामी राजनीतिक संगठन है, उसके लोगों के साथ दिखता, तो कभी सिमी के सदस्यों से उसकी लगातार बातचीत होती रहती थी। सिमी के सबसे बड़े सरगना सफ़दर नागौरी से भी जवाद की कई बार मुलाकात हुई थी।इंदौर के छत्रीपुरा क्षेत्र स्थित घोड़े वाली मस्जिद में चिटफंड चलाने वाले अंजुम के यहाँ भी जवाद ने कई लंबी बैठकें की थीं। बताया जाता है कि इंदौर के कई इलाकों में जवाद ने लोगों से अपनी चिटफंड योजना में लाखों रुपए इन्वेस्ट करवाए थे। महू के बाद उसका इंदौर के कई व्यक्तियों से भी गहरा संपर्क बना हुआ था।
यूनिवर्सिटी का कमरा नंबर 13 –
महू से फरार होने के बाद जवाद अहमद सिद्दीकी अचानक कई सालों तक गायब रहा, लेकिन दिल्ली ब्लास्ट के बाद उसका नाम फिर से सामने आया। अल-फलाह यूनिवर्सिटी की बिल्डिंग नंबर 17 के कमरा नंबर 13 में इन सभी आतंकियों की बैठकों का केंद्र हुआ करता था। यही वह कमरा था जिसमें पढ़ने वाले डॉक्टर मुज्जमिल, डॉ. शाहीन, डॉ. आदिल सहित मौलवी इश्तियाक अहमद बैठकर आतंक से जुड़ी अपनी मीटिंगें किया करते थे।