Peoples Reporter
26 Oct 2025
Mithilesh Yadav
22 Oct 2025
Mithilesh Yadav
22 Oct 2025
धर्म। धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताओं में पंचक के दिन अशुभ माने जाते हैं और इस दौरान किसी भी मांगलिक कार्य से बचने की सलाह दी जाती है। लेकिन भीष्म पंचक विशेष रूप से शुभ माना जाता है। यह कार्तिक शुक्ल एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक पांच दिनों तक चलता है और इसे विष्णु पंचक भी कहा जाता है। इस समय किए जाने वाले व्रत और पूजा-पाठ अत्यंत पुण्यकारी माने जाते हैं। लोग मानते हैं कि भीष्म पंचक में किए गए उपाय जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाते हैं।
भीष्म पंचक को विष्णु पंचक भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो लोग पूरे कार्तिक मास का व्रत नहीं रख पाते, वे कार्तिक माह के अंतिम पांच दिनों में व्रत कर सकते हैं और इससे पूरे मास के व्रत का लाभ प्राप्त होता है। इस समय महाभारत के प्रमुख पात्र भीष्म पितामह के सम्मान में उपवास, पूजा-पाठ और दान किया जाता है। कहा जाता है कि भीष्म पंचक में व्रत रखने से आध्यात्मिक लाभ मिलता है और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इस साल भीष्म पंचक की शुरुआत 1 नवंबर 2025 से होगी और इसका समापन 5 नवंबर 2025 को होगा। बता दें भीष्म पंचक का व्रत सभी पापों का नाश करने वाला और अक्षय फल देने वाला माना जाता है।
भीष्म पंचक कार्तिक मास के अंतिम पांच दिनों में मनाया जाता है। कहा जाता है कि पितामह भीष्म ने इस समय अपने प्राण त्यागने से पहले उपवास किया था। यह समय मोक्ष और पुण्य प्राप्ति के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। भीष्म पंचक में व्रत रखने, पूजा-पाठ और दान करने से आध्यात्मिक लाभ मिलता है और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दौरान विशेष नियमों का पालन किया जाता है, जैसे ब्रह्म मुहूर्त में स्नान, शुद्ध भोजन ग्रहण करना, दूध और तामसिक भोजन से परहेज, तर्पण करना और भगवान कृष्ण के मंत्रों का जाप करना।
भीष्म पंचक का व्रत रखने वाले प्रातःकाल स्नान कर पीले या सफेद वस्त्र पहनें। इसके बाद भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की प्रतिमा के सामने दीप जलाएं और तुलसी, फूल व मिष्ठान अर्पित करें। “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का कम से कम 11 बार जाप करें और भगवान का पंचामृत से अभिषेक करें। दिनभर सात्विक भोजन ग्रहण करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। इस व्रत में निम्न मंत्रों का भी जाप किया जाता है:
ॐ भीष्माय नमः, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः, और ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।
भीष्म पंचक व्रत कथा का पाठ सबसे पहले ऋषि वशिष्ठ, ऋषि भृगु और ऋषि गर्ग ने किया था। इसके बाद महाराजा अंबरीश ने भी इस व्रत का पालन किया। प्राचीन समय में कानपुर में सोमेश्वर नाम का एक गरीब ब्राह्मण रहता था, जो भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह हर कार्तिक मास में गंगा स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करता था। एक बार बीमार होने के कारण वह घाट तक पहुँच तो गया, लेकिन सीढ़ियाँ उतर नहीं सका। तब उसने वहीं अराधना शुरू कर दी। उस समय भगवान विष्णु वृद्ध ब्राह्मण के रूप में उसके पास आए और पूछा कि इतनी कठिनाई में वह यहाँ क्यों आया है। ब्राह्मण ने अपनी समस्या बताई और कहा कि वह दुखों से मुक्ति चाहते हैं। तब भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि कार्तिक माह की एकादशी से पूर्णिमा तक पाँच दिन को भीष्म पंचक कहा जाता है। यदि इन दिनों में गंगा में जलदान, गंध, अक्षत और पुष्प से पूजा की जाए और भगवान विष्णु की विधिपूर्वक अराधना की जाए तो सभी दुख और पाप दूर हो जाते हैं। गरीब ब्राह्मण ने भगवान की बात मानी और इस व्रत का पालन किया। उसके बाद उसके सारे दुख दूर हो गए और उसे शांति और सुख प्राप्त हुआ। इसी प्रकार से भीष्म पंचक व्रत का महत्व बढ़ गया और इसे महाभारत के भीष्म पितामह के सम्मान में मनाया जाने लगा।