Aniruddh Singh
4 Oct 2025
नई दिल्ली। भारत सरकार ने पीएम नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस भाषण के वादे के अनुरूप जीवन और स्वास्थ्य बीमा पर लगने वाला 18% जीएसटी पूरी तरह से माफ कर दिया है। यह बदलाव 22 सितंबर 2025 से लागू हो गया है। इसके साथ ही कई अन्य वस्तुओं और सेवाओं को दो स्लैब—5% और 18% में रखा गया। हालांकि, बीमा कंपनियों के लिए यह फैसला कुछ नई चुनौतियां लेकर आया है। पहले जब बीमा कंपनियों पर 18% जीएसटी लगता था, तो वे इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का दावा कर सकती थीं। यानी कार्यालय का किराया, एजेंटों को दिए जाने वाले कमीशन और अन्य आॅपरेशनल खर्चों पर जो जीएसटी कंपनियां चुकाती थीं, उसका लाभ उन्हें टैक्स क्रेडिट के रूप में मिल जाता था।
लेकिन अब जब जीएसटी हटा दिया गया है, तो बीमा कंपनियों के पास आईटीसी क्लेम करने का विकल्प ही खत्म हो गया है। इसका सीधा मतलब है कि उनके मार्जिन पर असर पड़ सकता है। मार्जिन की इस भरपाई के लिए बीमा कंपनियों ने एजेंटों, ब्रोकरों और डिस्ट्रीब्यूटर्स को दिए जाने वाले कमीशन और इनामों को घटाने का निर्णय लिया है। बीमा कंपनियों ने 1 अक्टूबर से एजेंटों और डिस्ट्रीब्यूटर्स का कमीशन 18% तक घटा दिया है। इसमें वेब एग्रीगेटर्स, बैंक के व्यक्तिगत एजेंट और बीमा ब्रोकर सभी शामिल है। यह कटौती न केवल पहली प्रीमियम पर बल्कि पॉलिसी रिन्यूअल पर भी लागू होगी। इसका असर टर्म इंश्योरेंस, सेविंग प्लान्स, यूनिट-लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान्स (यूएलआईपी) और एन्युटी जैसे सभी बीमा उत्पादों पर पड़ेगा।
शुरूआत में विशेषज्ञों का अनुमान था कि आईटीसी खत्म होने से कंपनियां अपने घाटे की भरपाई सीधे उपभोक्ताओं से करेंगी और प्रीमियम बढ़ा देंगी। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज रिसर्च ने अपने विश्लेषण में कहा बीमा कंपनियों को अपने टैरिफ में 3% से 5% तक का इजाफा करना पड़ सकता है। खासकर स्वास्थ्य बीमा की प्रीमियम दरों में इतनी बढ़ोतरी की संभावना जताई गई थी। लेकिन फिलहाल बीमा कंपनियों ने ऐसा कदम नहीं उठाया है। वे उपभोक्ताओं पर सीधा बोझ डालने के बजाय कमीशन और इनामों में कटौती करके अपना संतुलन साधने की कोशिश कर रही हैं। इसका सीधा असर बीमा एजेंटों और डिस्ट्रीब्यूटर्स पर पड़ेगा, जिनकी आय में भारी कमी आएगी।
पहले जहां एजेंटों को हर पॉलिसी बेचने पर और उसके नवीनीकरण पर अच्छा कमीशन मिलता था, वहीं अब उनकी कमाई घट जाएगी। इससे बीमा क्षेत्र में काम करने वाले लाखों एजेंटों की आय पर दबाव बढ़ सकता है। दूसरी ओर, उपभोक्ताओं के लिए फिलहाल राहत की बात यह है कि प्रीमियम दरें जस की तस बनी हुई हैं और उन पर सीधा अतिरिक्त बोझ नहीं डाला गया है। लंबी अवधि में यह देखना दिलचस्प होगा कि बीमा कंपनियां इस कमीशन कटौती को जारी रख पाती हैं या फिर उन्हें अंतत: प्रीमियम दरों में बदलाव करना पड़ता है। लेकिन अभी के लिए सरकार के जीएसटी फैसले ने जहां उपभोक्ताओं को राहत दी है, वहीं बीमा एजेंटों और डिस्ट्रीब्यूटर्स की कमाई पर सीधा असर डाल दिया है।