Aakash Waghmare
26 Nov 2025
अमरावती। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए कहा कि वे सेवानिवृत्ति के बाद कोई भी सरकारी पद स्वीकार नहीं करेंगे। यह बयान उन्होंने अपने पैतृक गांव दारापुर में एक सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए दिया। गवई ने कहा कि रिटायरमेंट के बाद वह ज्यादा समय अमरावती, दारापुर और नागपुर में बिताना चाहेंगे।
सीजेआई गवई इस साल नवंबर 2025 में सेवानिवृत्त होने वाले हैं। उन्होंने कहा कि यह निर्णय उन्होंने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए लिया है।
सीजेआई गवई शुक्रवार को अपने गांव दारापुर पहुंचे, जहां उनका भव्य स्वागत हुआ। उन्होंने अपने पिता, केरल और बिहार के पूर्व राज्यपाल आर एस गवई के स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की और परिवार के कुछ सदस्यों के साथ उनकी पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया। इस अवसर पर गवई ने गांव के प्रवेशद्वार पर ‘आर.एस. गवई स्मृति द्वार’ की आधारशिला भी रखी। इसके अलावा उन्होंने अमरावती जिले के दरियापुर में न्यायालय भवन का उद्घाटन किया। शनिवार को वे अमरावती जिला एवं सत्र न्यायालय में स्व. टी.आर. गिल्डा मेमोरियल ई-लाइब्रेरी का उद्घाटन करेंगे।
सीजेआई गवई ने अपने भाषण में रिटायरमेंट के बाद न्यायाधीशों को सरकारी पदों या राजनीतिक भूमिकाएं लेने पर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा- अगर कोई न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद सरकार में कोई अन्य पद ग्रहण कर लेता है या चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा देता है, तो इससे गंभीर नैतिक सवाल खड़े होते हैं। इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर संदेह उत्पन्न हो सकता है।
उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि सेवानिवृत्ति के बाद की इन भूमिकाओं से यह धारणा बन सकती है कि न्यायिक फैसले भविष्य में मिलने वाली सरकारी नियुक्तियों या राजनीतिक फायदे को ध्यान में रखकर लिए गए थे।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने यह भी साफ किया कि वे सेवानिवृत्ति के बाद राजनीति में प्रवेश नहीं करेंगे। उन्होंने कहा- CJI के पद पर रहने के बाद व्यक्ति को कोई जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए। अगर कोई रिटायरमेंट के बाद सरकारी पद स्वीकार करता है या चुनाव लड़ता है, तो इससे लोगों का न्यायपालिका से भरोसा उठ सकता है।
सीजेआई गवई ने सोशल मीडिया को लेकर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि वे व्यक्तिगत रूप से सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं हैं, लेकिन मानते हैं कि न्यायपालिका को जनता के मुद्दों से जुड़ाव बनाए रखना चाहिए। जस्टिस अपने घरों में बैठकर फैसले नहीं सुना सकते। हमें आम आदमी के मुद्दों को समझना होगा।