Naresh Bhagoria
8 Nov 2025
प्रीति जैन
भोपाल। गणेश उत्सव धार्मिक आस्था का पर्व है। यह आत्मसंयम और आत्मचिंतन का अवसर भी देता है। परंपरागत रूप से लोग इस दौरान काम, क्रोध, मोह, लोभ और हिंसा जैसी बुराइयों को त्यागने का संकल्प लेते हैं, लेकिन इस गणेशोत्सव में एक नई पहल कर सकते हैं, सोशल मीडिया की लत से छुटकारा पाने का संकल्प। कुछ युवाओं का कहना है कि शहर में एक से बढ़कर एक झांकियां सजी हैं। पंडाल दर्शन के दौरान अलग ही रौनक होती है। इस दौरान घर पर रहकर मोबाइल चलाने से बेहतर है इस उत्सव का हिस्सा बनें। इस दौरान कोई गरबा क्लास जा रहा है, तो कोई कॉलोनी में लगे पंडाल में सेवा कर रहा है। कुछ युवाओं ने तय किया है कि वे यह समय परिवार के साथ-साथ बिताएंगे, ताकि फेस्टिवल वाली फील आए। साथ ही सोशल मीडिया एक्टिविटी कम करने का संकल्प लेंगे।
-खुद से वादा करें सोशल मीडिया का प्रयोग रोजाना तय समय तक ही करेंगे।
-रील्स और वीडियो की जगह सांस्कृतिक आयोजनों व भजनों में शामिल हों।
-अपने परिवार के साथ समय बिताएं और परस्पर संवाद को बढ़ावा दें।
-धार्मिक आयोजन,पूजा और पारिवारिक कार्यक्रमों में मोबाइल से दूरी बनाएं।
-गणेशोत्सव के दौरान लिए जाने वाले संकल्प को निभाने का भी प्रयास करें।
लगातार स्क्रीन टाइम के कारण एकाग्रता में गिरावट आ रही है और मानसिक तनाव बढ़ रहा है। यही कारण है कि इस बार गणेशोत्सव को डिजिटल डिटॉक्स के रूप में भी मनाया जा रहा है। हमारे साथी इस मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं। बतौर एनएसएस वॉलेंटियर हम कैंप के दौरान यही सलाह देते हैं कि अपना समय मोबाइल पर ज्यादा व्यतीत करने की विचार रचनात्मक गतिविधियों में लगाएं।
- राकेश पंडित, एनएसएस वॉलेंटियर
हम सभी त्योहार में यह तय करते हैं कि मोबाइल व टीवी पर कम से कम वक्त बिताएंगे और फैमिली के साथ ज्यादा वक्त बिताएंगे। इस दौरान शहर में होने वाले आयोजनों में हम भाग ले रहे हैं। गणेशोत्सव के दौरान रील्स और ऑनलाइन एंटरटेनमेंट की जगह पंडाल दर्शन, भजन और सांस्कृतिक आयोजनों में हिस्सा लें रहे। इससे फैमिली भी बहुत खुश है।
-ऋषिता बोध उपाध्याय, स्टूडेंट
आज के समय में सबसे बड़ी चुनौती है, सोशल मीडिया की लत। इंस्टाग्राम, यूट्यूब, फेसबुक और रील्स पर घंटों स्क्रोल करना, बच्चों से लेकर युवाओं तक को प्रभावित कर रहा है। यह लत नशे की तरह असर डालती है। इससे न सिर्फ पढ़ाई और कामकाज प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि परिवार व समाज से संवाद भी कमजोर हो रहा है। त्योहार नई पहल करने का सही समय होते हैं, जब हम कोई संकल्प ले सकते हैं। संकल्प की शक्ति के साथ यह निश्चय करें कि अपनी आदतों में बदलाव लाएंगे। सेल्फ अवेयरनेस और सेल्फ क्लीनिंग त्योहारों का असली भाव होता है तो इसे समझकर नई शुरुआत करें।
-डॉ. शिखा रस्तोगी, मनोविशेषज्ञ