Shivani Gupta
16 Dec 2025
Naresh Bhagoria
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प्रभा उपाध्याय, इंदौर। पूरी तरह सक्षम लोग भी कई बार हालातों से हार मान लेते हैं, लेकिन समाज में ऐसे कुछ दिव्यांग योद्धा हैं जो अपनी सीमाओं को ही ताकत बना रहे लेते हैं। विपरीत परिस्थितियों के बीच वे न सिर्फ खुद के लिए नया रास्ता गढ़ रहे हैं, बल्कि दूसरों के लिए हौसले की मिसाल भी बन रहे हैं। इंदौर के शहजाद और अमर मालाकर भी ऐसे ही दो नाम हैं, जिन्होंने दिव्यांगता को बोझ मानने के बजाय संघर्ष को सहायक बनाया, जीवन को नई दिशा दी।

शहजाद इंदौर के निवासी हैं और जन्म से ही उनके दोनों पैर काम नहीं करते, लेकिन उन्होंने कभी इसे अपनी प्रगति के आड़े नहीं आने दिया। कॉल सेंटर में नौकरी से अपने कॅरियर की शुरूआत करने के बाद उन्होंने वर्ष 2022 में जोमैटो के साथ काम करना शुरू किया। शहजाद ने बताया कि वे नेशनल स्तर के टेबल टेनिस खिलाड़ी भी हैं। खास बात यह है कि अब तक वे 25 दिव्यांग युवाओं को जोमैटो में रोजगार दिला चुके हैं। शहरभर में शहजाद रोजाना 10 से 12 डिलीवरी खुद करते हैं। उनका जज्बा हर गली-चौराहे पर प्रेरणा की मिसाल बन जाता है।

अमर खरगोन के रहने वाले हैं और कुछ वर्ष पहले ही इंदौर आकर बसे हैं। अमर के पैर काम नहीं करते और हाथों की उंगलियां भी कम हैं। बचपन से ही वे माता-पिता के साथ गांव-गांव सब्जी बेचते थे। हाल ही में अमर ने जोमैटो से जुड़कर काम शुरू किया है। वे बताते हैं कि रोजाना 500 से 700 रुपए तक कमा लेते हैं। अमर का कहना है कि आत्मनिर्भर होना ही उनका सबसे बड़ा संकल्प था। और आज वे उसी संकल्प को हकीकत में बदलते हुए आगे बढ़ रहे हैं। अमर ने बताया कि शहजाद अली से उनका संपर्क व्हाटसअप के बने दिव्यांगजन ग्रुप से हुआ था।

25 साल की बंटी जाखड़ ने बताया कि उसका पहला जॉब जैमेटो में लगा है। वह दोनों पैरों से दिव्यांग हैं। दिनभर में 8 से 10 आर्डर लेते हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर है। उन्होंने कहा कि जॉब करने के बाद खुद के खर्चे के अलावा घर में भी दो पैसे दे देते हैं। बंटी ने बताया कि जब हम डिलेवरी देने जाते हैं तो लोग हमरा हौसला बढ़ाते हैं।