भोपाल। बम्बई से मुंबई, मद्रास से चेन्नई, कलकत्ता से कोलकता...नाम बदलने के बाद अब शायद मप्र की राजधानी भोपाल का नाम भी बदलने के लिए आवाज उठने लगी है। यह आवाज उठाई है भोपाल के सांसद आलोक शर्मा ने। सोमवार को पत्रकारों से बात करते हुए शर्मा ने कहा कि भोपाल की संस्कृति और स्वाभिमान को नई पहचान मिलना चाहिए। सांसद आलोक शर्मा ने कहा कि अब झीलों का यह शहर भोपाल के नवाबों से नहीं, अपनी पहचान से पहचाना जाए। कहा-भोपाल की संस्कृति और स्वाभिमान को नई पहचान मिले। सांसद शर्मा सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती पर तीन स्तरीय पदयात्राओं के बारे में जानकारी देने के लिए मीडिया से बात कर रहे थे।

सांसद आलोक शर्मा ने कहा कि वे भोपाल के विलीनीकरण आंदोलन और इतिहास को स्कूल के हिंदी के कोर्स में शामिल करने की मांग करेंगे। उन्होंने कहा कि भोपाल की आजादी में सरदार वल्लभभाई पटेल के योगदान को भी हमें भूलना नहीं चाहिए। 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो चुका था, लेकिन हमारा भोपाल आजाद नहीं हुआ था। भोपाल रियासत के तत्कालीन नवाब हमीदुल्लाह भोपाल का विलय भारत में नहीं करना चाहता था। तब तत्कालीन स्वतंत्र भारत के गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने नवाब हमीदुल्लाह को चेताया। तब जाकर नवाब हमीदुल्लाह राजी हुआ और 1 जून 1949 को हमारा भोपाल नवाब की गुलामी से आजाद हुआ। गौरतलब है कि इससे पहले भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति के नाम पर किया जा चुका है।
सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती पर भारत सरकार का युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय के माध्यम से तीन स्तरीय पदयात्राएं आयोजित कर रहा है। इस पहल का उद्देश्य युवाओं में राष्ट्रीय गौरव जगाना, समाज के प्रति जिम्मेदारी बढ़ाना और एकता की भावना को मजबूत करना है। यह कार्यक्रम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन भागीदारी से राष्ट्र निर्माण के विजन से प्रेरित है। इसमें युवाओं से लेकर वरिष्ठ नागरिक तक सभी मिलकर देश के इतिहास को याद करते हैं और राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाते हैं। विशेष तौर पर अमृत पीढ़ी यानी आज के युवाओं की भूमिका पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। पदयात्राएं तीन स्तर की होगी, इसमें जिला स्तरीय पदयात्रा देश के प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में 31 अक्टूबर से 25 नवंबर के बीच निकाली जा रही है।