Naresh Bhagoria
5 Nov 2025
प्रवीण श्रीवास्तव, भोपाल। उज्जैन, इंदौर और भोपाल में नदियों और तालाबों की स्थिति बेहद खराब है। उज्जैन में शिप्रा नदी का पानी पीना तो दूर नहाने लायक भी नहीं बचा। नदी में मिल रहे कचरे, सीवेज और अन्य गंदगी से पानी जहरीला हो चुका है। यही नहीं, इंदौर में कान्ह नदी में ऑक्सीजन की मात्रा भी शून्य पहुंच गई है। यही स्थिति राजधानी भोपाल की भी है। यहां बड़ा तालाब और कोलार डैम को छोड़कर शहर के अन्य सभी जल स्रोतों का पानी पीने लायक भी नहीं बचा। इन तालाबों में सामान्य से 16 गुना ज्यादा प्रदूषण पाया गया। यह खुलासा मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जून माह की वॉटर क्वालिटी रिपोर्ट से है। हुआ इसके मुताबिक, पानी में फीकल कॉलीफार्म और टोटल कॉलीफार्म यानी सीवेज की मात्रा ज्यादा है। मालूम हो कि एमपीपीसीबी ने प्रदेश के 288 जल स्त्रोतों के पानी की जांच की थी, जिसमें से 78 में पानी की गुणवत्ता असंतोषजनक मिली है। वहीं, रिपोर्ट में नर्मदा का पानी सबसे साफ पाया गया।
भोपाल में हथाईखेड़ा डैम, मुंशी हुसैन खां, सिद्दिकी हसन, छोटा तालाब, मोतिया तालाब और शाहपुरा तालाब की स्थिति सबसे खराब है। यहां एफसी (फीकल कॉलीफार्म) का मात्रा 100 के मुकाबले 170 से 540 तक पाई गई।
रिपोर्ट के अनुसार, शिप्रा नदी में सबसे ज्यादा गंदगी पाई गई। नदी में शहरी नाले और सीवेज मिलने से पानी की गुणवत्ता खराब हो गई। यहां सीवेज की मात्रा 1.60 लाख से ज्यादा पाई गई, जबकि मानक 5000 हजार ही है। इसी तरह उज्जैन की कान्ह नदी में सीवेज मानक से 31 गुना मिला।
कान्ह नदी शुद्धिकरण का अभियान एक दशक से अधिक समय से चल रहा है। अब तक 1200 करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि खर्च की जा चुकी है, हालात जस के तस हैं। कान्ह के शुद्ध नहीं होने का खामियाजा उज्जैन के लोगों को भी भुगतना पड़ता है।
[quote name="- डॉ. प्रणव रघुवंशी, वरिष्ठ गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट" quote="इस तरह के पानी से नहाने से त्वचा संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। प्रदूषित पानी के सेवन से डायरिया, उल्टी-दस्त हो सकते हैं। इसके साथ ही दीर्घकालिक असर में लिवर और पेट में संक्रमण भी हो सकता है।" st="quote" style="1"]
[quote name="- डॉ. सुभाष सी पांडे, पर्यावरणविद्" quote="ओडी जितना अधिक होगा, पानी उतना ही प्रदूषित होगा । तालाब संरक्षण का कार्य करने वाले तमाम सरकारी महकमे सजग नहीं हैं। इससे तालाब और नदियों के पानी की गुणवत्ता में लगातार कमी आती जा रही है।" st="quote" style="1"]
वॉटर बॉडीज सैंपल लिए 11
फेल 07
क्या मिला : गंदा पानी, जैविक कचरा मानक से दो गुना ज्यादा मिला, बड़ा तालाब और केरवा डैम का पानी साफ।
वॉटर बॉडीज सैंपल लिए 21
फेल 18
क्या मिला : गंदा पानी, जैविक कचरा मानक से पांच गुना ज्यादा मिला, कान्ह और सरस्वती नदी में ऑक्सीजन लेवल शून्य मिला।
वॉटर बॉडीज सैंपल लिए 35
फेल 31
क्या मिला : पानी में मलमूत्र, सीवेज, कचरा | शिप्रा-कान्ह नदी में सीवेज की मात्रा मानक से 31 गुना ज्यादा ।
वॉटर बॉडीज सैंपल लिए 21
फेल 06
क्या मिला : गंदा पानी, जैविक कचरा मानक से दो गुना ज्यादा मिला। शहरी तालाब गंदे मिले। वहीं, नर्मदा का पानी साफ मिला है।
डीओ (डिजॉल्व ऑक्सीजन) : 1 लीटर में 4 ग्राम से ज्यादा हो।
बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) : कचरा, जैविक पदार्थ, एक लीटर में तीन ग्राम से कम।
एफसी (फीकल कॉलीफार्म) : बैक्टीरिया है, जो जीवजंतु के मल से आता है। 100 एमएल में 2500 से कम ।
टीसी (टोटल कॉलीफार्म) : 100 एमएल में 5000 से कम हो ।
हर रोज मर रहीं मछलियां : प्रदूषण के खतरनाक स्तर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भोपाल के छोटे तालाब और शाहपुरा तालाब में हर रोज सैकड़ों मछलियां मर रही हैं। अन्य जलीय जीवों को भी खतरा है।
[quote name="- बृजेश शर्मा, क्षेत्रीय अधिकारी, मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड" quote="रिपोर्ट के अनुसार, शहर के कई तालाबों का पानी पीने योग्य नहीं है। इसका मुख्य कारण तालाबों में मिल रही गंदगी-सीवेज है, जिसने पानी को प्रदूषित किया है।" st="quote" style="1"]