Aniruddh Singh
30 Sep 2025
मुंबई। भारतीय रुपए ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सोमवार को नया ऐतिहासिक निचला स्तर छू लिया, जब रुपया गिरकर 88.80 प्रति डॉलर तक पहुंच गया। यह अब तक का सबसे कमजोर स्तर है। यह गिरावट मुख्य रूप से भारत और अमेरिका के बीच चल रहे व्यापारिक तनाव के कारण आई है। आज मंगलवार के शुरुआती ट्रेड में रुपया आशिंक रूप से सुधार करते हुए 88.76 के स्तर पर ट्रेड कर रहा है, लेकिन यह अब भी रिकार्ड निचले स्तर के करीब है। डॉलर के मुकाबले रुपए की कमजोरी का असर न केवल विदेशी व्यापार पर बल्कि आम जनता की जेब पर भी पड़ सकता है।
निर्यात और करेंसी मार्केट पर असरः भारत और अमेरिका के बीच जब भीरिश्तों में तनाव आता है, तो इसका सीधा असर विदेशी निवेश और करेंसी मार्केट पर पड़ता है। हाल के दिनों में अमेरिका की ओर से भारतीय निर्यात पर कुछ कड़े कदम उठाए गए हैं, साथ ही भारत ने भी अपने उद्योग और व्यापार को बचाने के लिए कुछ शर्तें कड़ी की हैं। इन हालात ने विदेशी निवेशकों में चिंता बढ़ा दी है और उन्होंने अपने पैसे डॉलर की ओर शिफ्ट करना शुरू कर दिया। डॉलर में निवेश सुरक्षित समझा जाता है, इसी वजह से डॉलर मजबूत और रुपया कमजोर होता चला गया।
रुपए की कमजोरी का असर सबसे पहले आमदनी और खर्च के संतुलन पर दिखाई देगा। भारत बड़ी मात्रा में कच्चा तेल, मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक सामान और कई अन्य जरूरी चीजें आयात करता है। जब रुपया कमजोर होता है तो इन सभी आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं क्योंकि हमें डॉलर में भुगतान करना पड़ता है। इसका सीधा असर पेट्रोल-डीजल की कीमतों और उससे जुड़ी महंगाई पर होता है। आम उपभोक्ता को रोजमर्रा की जिंदगी में महंगाई का बोझ झेलना पड़ता है।
गिरावट के कुछ फायदे भी हैंः दूसरी ओर, रुपए की कमजोरी का कुछ फायदा भी हो सकता है। भारतीय निर्यातकों, खासकर आईटी और फार्मा सेक्टर को, डॉलर में भुगतान मिलता है। जब रुपया कमजोर होता है तो उन्हें ज्यादा रुपये मिलते हैं, जिससे उनकी आमदनी बढ़ती है। लेकिन मौजूदा हालात में व्यापारिक तनाव के कारण निर्यातक भी पूरी तरह लाभ नहीं उठा पा रहे हैं क्योंकि अमेरिकी बाजार में अनिश्चितता बनी हुई है।
रुपए की लगातार गिरावट यह संकेत देती है कि विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में फिलहाल सावधानी बरत रहे हैं। यदि अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक तनाव और गहराता है तो रुपया और नीचे जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले हफ्तों में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया को हस्तक्षेप करना पड़ सकता है ताकि रुपये की गिरावट को सीमित किया जा सके। आरबीआई के पास विदेशी मुद्रा भंडार है, जिसका उपयोग वह बाजार में डॉलर बेचकर रुपये को सहारा देने के लिए कर सकता है।
आम लोगों के लिए यह स्थिति चिंताजनकः यदि रुपया कमजोर बना रहता है तो रोजमर्रा की वस्तुओं से लेकर शिक्षा और विदेश यात्रा तक सब महंगा हो जाएगा। कुल मिलाकर, रुपये का 88.80 प्रति डॉलर के स्तर तक गिरना यह दर्शाता है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक रिश्तों और नीतिगत फैसलों का असर सीधे-सीधे करेंसी और घरेलू अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। भारत के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वह अमेरिका के साथ व्यापारिक मतभेदों को सुलझाए और साथ ही घरेलू स्तर पर आर्थिक स्थिरता बनाए रखे।