Manisha Dhanwani
5 Nov 2025
Naresh Bhagoria
5 Nov 2025
Naresh Bhagoria
5 Nov 2025
रामचन्द्र पाण्डेय
भोपाल। बरकतउल्ला विश्वविद्यालय (बीयू) सहित विभिन्न पारंपरिक विवि और कॉलेजों में एग्रीकल्चर कोर्स तो शुरू कर दिए गए हैं। लेकिन प्रवेश लेने वाले विद्यार्थी कृषि की पढ़ाई सिर्फ किताबों से ही कर रहे हैं। बीयू में कृषि विभाग में फोर्थ ईयर में एडमिशन दिए जा रहे हैं, लेकिन न तो अब तक विभाग का अलग भवन है और न ही प्रेक्टिकल के लिए कृषि भूमि । विद्यार्थियों को सिर्फ किताबी ज्ञान ही दिया जा रहा है। जबकि एग्रीकल्चर कोर्स के लिए खेत में प्रेक्टिकल महत्वपूर्ण है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की घोषणा के बाद बीयू में कृषि विभाग स्थापना कर प्रवेश कराना शुरू किए गए थे। यहां तक पीएम उषा योजना से विभाग को स्थापित करने के लिए 25 करोड़ रुपए तक दिए गए हैं। इसके बाद भी विद्यार्थी सुविधाओं के अभाव में कृषि की बिना प्रेक्टिकल के डिग्री पूरी करने में लगे हुए हैं। बीयू में कृषि विभाग खोला जरूर गया है, लेकिन सुविधाओं के नाम पर सभी कुछ जीरो ही है। बीयू वर्तमान में चौथे वर्ष में प्रवेश दे रहा है।
बीयू को कृषि के लिए 25 सीटें दी गई हैं। बीयू में खरीफ और रबी की फसलों के अलावा दलहन और तिलहन फसलों का अध्ययन कराया जा रहा है, लेकिन फसलों का भौतिक ज्ञान देने के लिए एग्रीकल्चर काउंसिल ऑफ इंडिया के मापदंड के मुताबिक तीस हेक्टयर कृषि भूमि नहीं है। विद्यार्थियों को क्यारियों में गेहूं और अन्य फसलें दिखाकर प्रैक्टिकल ज्ञान देने की खानापूर्ति की जा रही है। बीयू में विभाग की बिल्डिंग और रिसर्च फील्ड के लिए जल्द भूमिपूजन किया जाएगा, लेकिन निर्माण कार्य पूरा होने में चार साल लग सकते हैं। तब तक छात्रों को सिर्फ किताबों और सीमित डेमो क्लास पर निर्भर रहना होगा। कुछ प्रेक्टिकल सत्र दूसरे कॉलेजों या रिसर्च सेंटर में कराए जा रहे हैं, लेकिन यह समाधान अस्थायी है। किसी भी विवि और कॉलेज को एग्रीकल्चर कोर्स चलाने के लिए नियमानुसार 30 हेक्टयर कृषि भूमि, दस हजार वर्गफिट में तैयार भवन, 20 डिवीजन और अन्य संसाधन होना जरूरी हैं। जो बीयू के साथ ही कोर्स शुरू करने वाले विवि और कॉलेजों के पास मौजूद नहीं हैं। विद्यार्थियों को सिर्फ किताबी ज्ञान ही दिया जा रहा है। जबकि उन्हें कृषि जैसे व्यावहारिक विषय में फील्ड वर्क सबसे अहम होता है।
राजधानी के सरोजनी नायडू कन्या महाविद्यालय (नूतन कॉलेज) में एग्रीकल्चर कोर्स शुरू किया गया है। पिछले वर्ष केवल 13 छात्राएं थीं, दूसरे सत्र में ही यह संख्या लगभग दोगुनी हो गई है, 24 छात्राओं ने अभी तक एडमिशन लिया है। यहां उधारी के खेत में प्रेक्टिकल कराए जा रहे हैं। कॉलेज ने इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ सॉइल साइंस और सेंट्रल एग्रीकल्चर एंड इंजी. इंस्टीट्यूट से एमओयू किया है। इसके अलावा गार्डन में क्यारियां बनाकर छात्राओं की पढ़ाई कराई जाती है। प्रदेश के एकमात्र एक्सीलेंस कॉलेज में भी एग्रीकल्चर कोर्स शुरू किया गया है। इसके लिए अभी कॉलेज परिसर में ही अभी छोटा खेत बनाकर उत्तम खेती के लिए प्रे?क्टिकल कराए जा रहे हैं। एग्रीकल्चर का जिम्मा विभागाध्यक्ष डॉ. अजय भारद्वाज को दिया गया है। कॉलेज के डायरेक्टर प्रज्ञेश अग्रवाल ने बताया कि दो सत्रों के 50-50 यानि इस वर्ष तक 100 स्टूडेंट ने एडमिशन लिया है। फर्स्ट ईयर में कम प्रे?क्टिकल हैं, इसलिए इस वर्ष एक छोटा खेत बनाकर उसमें धान की रोपाई कराई है। अग्रवाल ने बताया कि अन्य संस्थाओं से एमओयू भी किए जा रहे हैं।
छात्रों ने कहा कि कृषि विज्ञान की पढ़ाई इसलिए चुनी थी ताकि वे आधुनिक खेती, फसल प्रबंधन और मिट्टी परीक्षण जैसे विषयों को व्यावहारिक तौर पर सीख सकें, लेकिन उन्हें अभी तक सिर्फ क्लास रूम से पढ़ाई कराई जा रही है। न तो लैब हैं, न ही खेत, जहां वे बीज बोकर, फसल उगाकर, मिट्टी को जान कर सीख सकें। इस पर बरकतउल्ला विश्वविद्यालय (बीयू) के कुलगुरू प्रो. सुरेश कुमार जैन ने कहा अभी एग्रीकल्चर में स्टूडेंट्स की संख्या कम है। इसलिए उन्हें विभाग के पीछे क्यारियां बनाकर प्रेक्टिकल कराए जा रहे हैं। शीघ्र ही भवन और कृषि भूमि का भूमिपूजन कराया जाएगा। स्टूडेंट्स को जल्द ही नया भवन और रिसर्च फील्ड उपलब्ध कराया जाएगा ताकि वे विधिवत प्रयोग कर सकें।