Aakash Waghmare
12 Nov 2025
नरेश भगोरिया,
अर्जुन सिंह का मुख्यमंत्री बनना मप्र की राजनीति का बड़ा टर्निंग पॉइंट था। अर्जुन सिंह के मुख्यमंत्री बनने का किस्सा भी यादगार है। उन्हें मुख्यमंत्री बनने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। 1975 में सबसे पहले प्रकाशचंद्र सेठी उन्हें मुख्यमंत्री के लिए हाईकमान से मिलवाना चाहते थे, लेकिन तब ऐसा हो न सका।
दरअसल, इससे पहले इमरजेंसी के बाद 1977 में विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस की मप्र में बुरी तरह हार हुई। अविभाजित मप्र में कुल 320 विधानसभा सीटें थीं। इनमें से कांग्रेस सिर्फ 84 पर ही जीत सके। मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल भी चुनाव हार गए थे। 1956 के यह पहला मौका था जब कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ रहा था। कैलाशचंद्र जोशी मप्र के मुख्यमंत्री बने थे। तब विधानसभा में अर्जुन सिंह को नेता प्रतिपक्ष चुना गया। विपक्ष के नेता रहते अर्जुन सिंह ने एक साल में पूरे प्रदेश का दौरा किया।
जून 1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मप्र में वापसी की और सरकार बनाने की कवायद शुरू हो गई। उस समय मुख्यमंत्री के लिए प्रकाशचंद्र सेठी, विद्याचरण शुक्ल, कृष्णपाल सिंह, कमलनाथ, शिवभानु सोलंकी के साथ अर्जुन सिंह का नाम भी मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल था। शिवभानु सिंह सोलंकी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे तो उनका दावा मुख्यमंत्री के लिए काफी मजबूत था। पहले दौर की एक वोटिंग हो चुकी थी। कमलनाथ को जितने विधायकों के वोट मिले थे वे उन्होंने अर्जुन सिंह को ट्रांसफर कर दिए थे। हालांकि इस चुनाव से सीएम का नाम नहीं निकल सका और मामला फिर दिल्ली भेज दिया गया।
विधायक दल के नेता का चयन करने के दूसरे दौर के लिए प्रणव मुखर्जी को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा गया। कांग्रेस के सभी 246 विधायकों से प्रणव मुखर्जी ने बात की। अब मुकाबला शिवभानु सिंह सोलंकी और अर्जुन सिंह के बीच था। दोनों के विधायक गुप्त स्थान पर भेज दिए गए थे। चुनाव के दिन विधायकों ने एक पेटी में वोट डाले, लेकिन वह पेटी भोपाल में नहीं खोली गई। प्रणव मुखर्जी उसे अपने साथ दिल्ली ले गए। इसके बाद अर्जुन सिंह, शिवभानु सोलंकी और विद्याचरण शुक्ल को दिल्ली बुलाया गया। दिल्ली में संजय गांधी ने अर्जुन सिंह को विधायक दल का नेता बना दिया गया। हालांकि वोटिंग में बहुमत शिवभानु सोलंकी के साथ था, लेकिन हाईकमान ने तय कर दिया तो अर्जुन सिंह ही मुख्यमंत्री बने। 9 जून 1980 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने शिवभानु सिंह सोलंकी को उपमुख्यमंत्री बनाया। इसके साथ ही वित्त मंत्रालय भी उन्हें सौंपा।
1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 251 सीटें मिलीं। इनमें 200 से ज्यादा नए चेहरे थे, जिन्हें अर्जुन सिंह ने टिकट दिए थे। अर्जुन सिंह को विधायक दल का नेता चुन लिया गया। वे मंत्रिमंडल की लिस्ट लेकर दिल्ली पहुंचे तो राजीव गांधी ने उनका हाथ पकड़कर सीधे पंजाब का राज्यपाल बनने का आदेश सुना दिए। हालांकि मप्र का मुख्यमंत्री चुनने का अधिकार अर्जुन सिंह को दिया गया। तब उन्होंने मोतीलाल वोरा का नाम लिया। वरिष्ठ पत्राकर विजय दत्त श्रीधर मानते हैं कि अर्जुन सिंह के कार्यकाल में गरीबों का विशेष ध्यान रखा गया। झुग्गीवासियों को वहीं पट्टे दिए गए जहां वे रह रहे थे। एक बड़ा तेंदुपत्ता को लेकर हुआ जिसमें उद्योगपतियों की जगह आदिवासियों को पत्ता तोड़ने का अधिकार दिया गया साथ ही बोनस देना शुरू किया गया। अर्जुन सिंह के कार्यकाल में संस्कृति और कलाकारों के लिए बहुत काम किए गए जो आज भी याद किए जाते हैं।