Hemant Nagle
27 Nov 2025
भोपाल। मध्य प्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ मर्यादित (मार्कफेड) और खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम (नॉन) को 10 साल बाद भी प्याज रुला रही है। दोनों संस्थानों को प्याज खरीदी का करोड़ों रुपए केंद्र सरकार से लेना है। अकेले मार्कफेड को 50 करोड़ का भुगतान अभी तक केंद्र से नहीं हुआ है, जबकि यह राशि लेने के लिए पिछले 9 साल से पत्राचार हो रहा है। इसके चलते मार्कफेड पर इस राशि का ब्याज बढ़ता जा
रहा है।
सरकार ने मार्कफेड और नागरिक आपूर्ति निगम के माध्यम से 2016 में किसानों से 600 करोड़ रुपए की प्याज खरीदी थी। बताया जाता है कि आधे से ज्यादा प्याज गोदामों में खराब हो गई थी। सरकार को इसे नष्ट करने में करोड़ों रुपए खर्च करने पड़े थे। किसानों से 6 रुपए प्रति किलो प्याज खरीदी गई थी, लेकिन इसे तीन रुपए किलो में भी कोई खरीदने को तैयार नहीं हुआ।
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम को राज्य और केंद्र सरकार से प्याज, गेहूं, चना, मसूर, सरसों और प्याज का करीब 77 हजार करोड़ रुपए लेना है। इसके लिए निगम हर माह करीब 11 करोड़ रुपए बैंकों को ब्याज दे रहा है। निगम प्रति माह केंद्र सरकार से पत्राचार कर रहा है, लेकिन हर बार कोई न कोई क्वैरी निकाल कर उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। इससे राशि बढ़ती जा रही है। इसी के चलते राज्य ने केंद्र के समक्ष समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी से हाथ खड़े कर दिए हैं। इस संबंध में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी को एक पत्र भी लिखा है। उन्होंने धान और गेहूं की खरीदी सीधे केंद्र सरकार से करने की अपील की है। राज्य में कर्ज का हवाला दिया है। हालांकि केंद्र के आश्वासन पर मध्यप्रदेश सरकार ने धान खरीदी की तैयारी शुरू कर दी है।
मंदसौर जिले के दुधिया गांव के किसान आनंद पांड्या कहते हैं कि मेरे यहां गांव से दस टन प्याज की खरीदी की गई थी। प्याज खरीदी करने के बाद लंबे समय तक गांव में खुले में रख दी थी, जिससे प्याज भीग कर खराब हो गई। बाद में इसे नष्ट कर दिया गया था। हालांकि किसानों को तीन चार माह के अंदर प्याज का भुगतान कर दिया गया था।
नागरिक आपूर्ति निगम के रिटायर्ड मैनेजर अरुण वर्मा कहते हैं कि सरकारों को प्याज, धान, गेहूं सहित अन्य खरीदी की राशि का भुगतान हर साल देना चाहिए, लेकिन सरकारें नहीं देती हैं। इससे निकायों की आर्थिक स्थिति कमजोर होती जा रही है। निकायों पर ब्याज पर ब्याज बढ़ता जा रहा है।