Aniruddh Singh
4 Dec 2025
वाशिंगटन डीसी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने भारत समेत अन्य देशों से आयात होने वाली जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ लगाने की योजना को फिलहाल स्थगित कर दिया है। इस निर्णय से भारतीय फार्मा सेक्टर को बड़ी राहत मिली है और इसके परिणामस्वरूप भारतीय दवा कंपनियों के शेयरों में तेजी देखी गई। अमेरिकी बाजार में भारतीय जेनेरिक दवाओं की मजबूत उपस्थिति को देखते हुए यह फैसला भारत के लिए एक बूस्टर डोज साबित हुआ है। अमेरिका विश्व का सबसे बड़ा दवा बाजार है और भारतीय कंपनियां वहां जेनेरिक दवाओं की प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं। ट्रंप प्रशासन की अमेरिका फर्स्ट नीति के तहत यह संभावना जताई जा रही थी कि वे विदेशी कंपनियों पर शुल्क लगाकर घरेलू निर्माताओं को बढ़ावा देंगे।
जेनरिक दवाओं को टैरिफ के दायरे में रखने से भारतीय निर्यातकों को बड़ा झटका लग सकता था, क्योंकि अमेरिका में बिकने वाली जेनेरिक दवाओं का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा भारत से आता है। अब जब इस योजना को रोक दिया गया है, तो भारतीय कंपनियों के लिए निर्यात का मार्ग सुगम बना रहेगा। इस खबर के बाद शेयरबाजार में सन फार्मा, डॉ. रेड्डीज, ल्यूपिन और अरोबिंदो फार्मा जैसी प्रमुख कंपनियों के शेयरों के मूल्य में उछाल देखने को मिली। निवेशकों का भरोसा बढ़ा, क्योंकि अब उन्हें अमेरिका के बाजार में स्थिरता और बेहतर लाभ की उम्मीद है। इस फैसले ने न केवल भारतीय फार्मा कंपनियों को राहत दी, बल्कि वैश्विक दवा आपूर्ति श्रृंखला के लिए भी यह एक सकारात्मक संकेत है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम अमेरिकी स्वास्थ्य प्रणाली की वास्तविक जरूरतों को ध्यान में रखकर उठाया गया है। अमेरिका में दवाओं की कीमतें पहले से ही ऊंची हैं और जेनेरिक दवाओं से ही आम उपभोक्ताओं को राहत मिलती है। यदि शुल्क लगाया जाता, तो अमेरिकी मरीजों के लिए दवाएं और महंगी हो जातीं, जिससे राजनीतिक और जनसामाजिक दबाव बढ़ सकता था। इसी कारण ट्रंप प्रशासन ने फिलहाल इसे को स्थगित कर दिया है। भारत के लिए यह केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। पिछले कुछ वर्षों में भारत ने खुद को फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड के रूप में स्थापित किया है, और कोविड-19 महामारी के बाद से विश्वभर में उसकी दवा निर्माण क्षमता को मान्यता मिली है।