Manisha Dhanwani
11 Dec 2025
इंदौर पुलिस के कुछ कथित थाना प्रभारियों की कार्यप्रणाली पर अब तक का सबसे बड़ा और सनसनीखेज सवाल खड़ा हो गया है। सूत्रों और विभागीय दस्तावेज़ों के अनुसार, पुलिस के भीतर वर्षों से संचालित एक गुप्त और खतरनाक ‘गवाह खेल’ का बड़ा भंडाफोड़ होने की कगार पर है। आरोप है कि हत्या, लूट, दुष्कर्म, एनडीपीएस जैसे अति गंभीर अपराधों में भी तैयारशुदा, पॉकेट और संदिग्ध गवाहों के सहारे 1250 से अधिक प्रकरण पंजीबद्ध कर दिए गए। वह भी सिर्फ दो ही गवाहों के माध्यम से! जब तक यह पूरा खेल वरिष्ठ अधिकारियों की नज़रों में आया, तब तक इंदौर पुलिस की फाइलों में कई मामले “निपटा” दिए गए थे और कई आरोपी ऐसे गवाहों के बयान पर वर्षों तक जेलों में चक्कर काटते रहे।
जानकारी के अनुसार, खजराना थाना में पदस्थ तत्कालीन थाना प्रभारी दिनेश वर्मा के कार्यकाल (2022–2023) में यह पूरा खेल चरम पर था। आरोप यह है कि वर्मा ने अपने पूरे कार्यकाल में नवीन चौहान और इरशाद नामक दो व्यक्तियों को “पॉकेट गवाह” की तरह इस्तेमाल किया और सैकड़ों गंभीर अपराधों में दोनों के हवाले से बयान दर्ज करवाकर प्रकरण तैयार कर दिए। इतना ही नहीं, विभागीय स्रोत बताते हैं कि 333 दुष्कर्म प्रकरणों, कई एनडीपीएस मामलों और अन्य संवेदनशील घटनाओं में भी यही दोनों गवाह सामने आए। यह पैटर्न इतना संदिग्ध था कि जांच में यह स्पष्ट दिखा कि गंभीर अपराधों को निपटाने के लिए इन्हीं दो नामों पर पूरा सिस्टम टिका रहा।
कानून-व्यवस्था की धज्जियां उड़ाते हुए, तत्कालीन थाना प्रभारी ने मानो ‘गवाह फैक्ट्री’ बनाकर अपने कार्यालय में मुकदमों की कतार लगा दी,और पूरे प्रकरण केवल पॉकेट गवाहों की मदद से तैयार कर दिए। यह खेल वर्षों तक चलने की बात सामने आ रही है।
चंदन नगर टीआई को सुप्रीम कोर्ट की फटकार—
फर्जी गवाहों के इस्तेमाल का मामला नया नहीं है। कुछ ही दिन पहले चंदन नगर थाना प्रभारी इंद्रमणि पटेल को भी ऐसे ही संदिग्ध गवाहों के उपयोग पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार पड़ी थी। इसके बावजूद, हैरानीजनक तथ्य यह है कि इंद्रमणि पटेल आज भी अपनी कुर्सी पर जस की तस बैठे हैं, और विभागीय कार्रवाई का कहीं कोई ठोस परिणाम ज़मीन पर दिखाई नहीं देता। यह भी सवाल खड़ा करता है कि क्या इंदौर पुलिस के भीतर ऐसे मामलों पर वास्तविकता में कोई नियंत्रण व्यवस्था मौजूद है या नहीं।
दो गवाह—774 और 504 मामलों में शामिल!
सवाल यह है कि क्या ये दोनों व्यक्ति कहीं भी, कभी भी, हर अपराध के मौके पर जादुई तरीके से मौजूद रहते थे? या यह पूरा तंत्र किसी संगठित गठजोड़ के तहत चलाया जा रहा था?यह आंकड़े साफ साबित करते हैं कि मामला मात्र गड़बड़ी नहीं, बल्कि एक सिस्टमेटिक, योजनाबद्ध और खतरनाक ‘गवाह सिंडिकेट’ की ओर इशारा करता है जो इंसाफ की जड़ें खोद रहा था।
कमिश्नर ने बिठाई विभागीय जांच—DCP को जिम्मेदारी
जैसे ही प्रकरण उच्च स्तर तक पहुंचा, पुलिस कमिश्नर संतोष कुमार सिंह ने तुरंत विभागीय जांच का आदेश जारी किया। जांच की कमान डीसीपी जोन-1 कृष्णलाल चंदानी को सौंपी गई है। अब दिनेश वर्मा को नोटिस देकर पूछा गया है कि 2022 से 2023 के बीच उन्होंने इतने गंभीर मामलों में केवल दो गवाहों पर निर्भर होकर कार्रवाई क्यों और कैसे की।विभाग इस पूरे घटनाक्रम की परतें उधेड़ने में जुट चुका है, और माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में और कई खुलासे सामने आ सकते हैं।
पुलिस सिस्टम पर भारी दाग—क्या यह सिर्फ दो गवाहों की कहानी है या गहरे नेटवर्क का संकेत?
इस पूरे मामले ने पुलिस की विश्वसनीयता, निष्पक्षता और न्याय व्यवस्था की रीढ़ को कठघरे में खड़ा कर दिया है। 1250 गंभीर अपराधों को दो गवाहों से निपटाने का दावा सिर्फ एक थाने की बदहाली नहीं दिखाता। यह पूरे सिस्टम में मौजूद गहरे, सड़े हुए नेटवर्क की ओर इशारा करता है।जांच आगे बढ़ने पर यह खेल कहीं इंदौर पुलिस के बड़े हिस्से को नंगा न कर दे, यह आशंका अब वास्तविकता बनती जा रही है।