
केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को निर्देश दिया है कि वे तुरंत उन सभी वीडियो क्लिप्स को हटाएं, जिनमें एक नाबालिग लड़की को बदनाम किया गया और उसका मजाक उड़ाया गया। यह आदेश न्यायमूर्ति एन नागरेश ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया जो पीड़िता की मां द्वारा दायर की गई थी।
फिल्म समीक्षा बनी उत्पीड़न की वजह
याचिका के अनुसार एक नाबालिग लड़की ने 30 मई को मलयालम फिल्म मूनवॉक की समीक्षा एक वीडियो में की थी। इस फिल्म का निर्देशन उसके चाचा ने किया था। वीडियो मूल रूप से एक मासूम फिल्म रिव्यू था, लेकिन इसे सोशल मीडिया पर कुछ अज्ञात लोगों द्वारा गलत तरीके से एडिट कर अश्लील, व्यंग्यात्मक और आपत्तिजनक रूप में प्रसारित किया गया।
वीडियो को अश्लील रूप से किया गया एडिट
शिकायत में बताया गया कि मूल वीडियो को इस तरह से एडिट किया गया कि बच्ची की आवाज और चेहरे के भाव तो वही रहे, लेकिन पृष्ठभूमि में अश्लील संगीत, वॉयसओवर और आपत्तिजनक कैप्शन जोड़े गए। इसके चलते मूल संदेश पूरी तरह से बदल गया और वीडियो एक तरह का मज़ाक और चरित्रहनन बन गया।
मां ने की थी शिकायत
बच्ची की मां ने बताया कि उन्होंने पहले इन वीडियो को रिपोर्ट करके हटाने का प्रयास किया था। लेकिन यूट्यूब, इंस्टाग्राम और फेसबुक ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इससे मजबूर होकर उन्होंने न्यायालय का रुख किया और अपनी बेटी को डिजिटल शोषण और साइबर उत्पीड़न से बचाने की गुहार लगाई।
बच्ची के अधिकारों का हुआ उल्लंघन
न्यायमूर्ति नागरेश ने मामले की गंभीरता को समझते हुए कहा कि सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा उचित कदम न उठाना नाबालिग बच्ची के संवैधानिक और वैधानिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है। उन्होंने इन वीडियो क्लिप्स को तुरंत हटाने का आदेश दिया और सोशल मीडिया कंपनियों से इस दिशा में प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित करने को कहा।
मानसिक आघात से जूझ रही है बच्ची
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि वायरल वीडियो क्लिप्स के कारण बच्ची गहरे मानसिक आघात से गुजर रही है और उसका भावनात्मक संतुलन भी बिगड़ चुका है। मां ने कोर्ट से अपील की थी कि उसकी बेटी को इस साइबर उत्पीड़न से राहत दिलाई जाए।
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