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मनीष दीक्षित-भोपाल। सांप मर जाए और लाठी भी न टूटे। इस कहावत का उपयोग महंगाई के दौर में एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) उत्पाद बनाने वाली कंपनियों पर पूरी तरह से खरी उतर रही है। आमजन की जेब हल्की कर रही इन कंपनियों ने ऐसे चक्रव्यूह की रचना की, जिसमें उत्पाद खरीदने वालों का बजट भी बिगड़ रहा है। चुपके-चुपके आई इस महंगाई पर लोगों का ध्यान भले ही सीधे नहीं जाता है, लेकिन जेब पर बड़ा असर डाल रही हैं।
दरअसल, कुछ कंपनियों ने करीब दो साल पहले से उत्पादों के रेट तो नहीं बढ़ाए, लेकिन मात्रा में कमी कर दी। यूं तो यह कमी सामने नजर नहीं आती है, लेकिन मात्रा घटाने से जिस उत्पाद को उपभोक्ता महीने में एक से दो बार खरीदता था, उसे अब तीन बार तक खरीदना पड़ रहा है। नतीजतन उतने ही पैसे में ज्यादा माल की बिक्री कर कंपनियां खूब पैसा बटोर रही हैं।
रोज इस्तेमाल करने वाले साबुन, वॉशिंग पावडर, कॉफी, टोमैटो केचप, क्रीम हो या टूथ पेस्ट , खाद्य तेल समेत अन्य चीजें। विभिन्न कॉस्मेटिक्स प्रोडक्ट के अलावा दालमोठ, नमकीन, बिस्किट जैसे तमाम ऐसे उत्पाद हैं जो लोग रोज खरीदते हैं। छोटे हों या मध्यम वर्गीय एवं बडे़ उपभोक्ता, सभी इन चीजों को अपनी दिनचर्या में शामिल कर चुके हैं। ऐसे में माल की मात्रा घटाने का असर छोटे और मध्यम वर्गीय ग्राहक पर बहुत ज्यादा पड़ता है।
खाद्य तेल : घर में उपयोग होने वाले तेल की बात करते हैं। पहले एक लीटर मिलता था अब विभिन्न कंपनियों ने इसकी मात्रा घटाकर 850 से 800 ग्राम तक कर दी है। कीमत में खास फर्क नहीं पड़ा है। मगर महीने का खर्च बढ़ गया है। शैंपू : इसी तरह विभिन्न ब्रांड के शैंपू का वजन कम कर दिया गया है। 100 मिलीलीटर की पैकिंग वाले शैंपू की बोतल 80 एमएल की कर दी गई है। नमकीन पदार्थ : नमकीन व दालमोठ का भी वजन घटाया गया है। बिस्किट : पारले-जी सरीखे आमजन को जोड़ने वाले इस बिस्किट की पैकिंग में भी वजन घटा दिया गया है। कीमत वही है लेकिन वजन कम। अन्य उत्पाद : ब्रेड, बटर, समेत तमाम ऐसे आइटम हैं जो रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं, उनका वजन भी कम हो गया है। एक उपभोक्ता अरुण मेहरा कहते हैं कि प्रोडक्ट पर रेट बढ़ाने से उपभोक्ता वस्तु को खरीदने से पीछे हटते हैं, जबकि मात्रा कम करके रेट वही रखने पर महंगाई नजर नहीं आती।
कंपनियों ने रेट कम नहीं किए लेकिन माल की मात्रा घटा दी है। इससे उस माल की बिक्री बढ़ गई। छोटे पाउच और छोटी पैकिंग कई बार खरीदनी पड़ रही है। कंपनियों के इस कदम से ग्राहक भी भ्रमित रहता है। उसे लगता है कि रोजमर्रा उपयोग में आने वाली वस्तुओं का उसके घर में ज्यादा उपयोग हो रहा है। -अशोक गुप्ता, किराना व्यापारी
कीमत वही रखकर सामग्री कम करने के तरीके से ग्राहक तो ठगे जा रहे हैं। कई दिनों तक हमें लगा कि रेट नहीं बढ़े हैं, लेकिन सामान जल्दी खत्म होने लगा तो समझ में आया कि माजरा क्या है। इससे हमें कभी-कभी महीने में दो बार वस्तुएं खरीदनी पड़ रही है। कंपनियां हमें एक ही सामान बार- बार खरीदने पर मजबूर कर रही हैं। -भारती पटेल, गृहिणी, भोपाल