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Naresh Bhagoria
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राकेश भारती
ग्वालियर । संडे हो या मंडे, रोज खाओ अंडे... कभी टीवी चैनलों पर लोकप्रिय रहे इस स्लोगन ने दो भाइयों को इस कदर प्रभावित किया कि उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद पोल्ट्री कारोबार को ही कॅरियर के रूप में अपना लिया। अनुभव की कमी से शुरुआत में घाटा सहने के बाद भी इन्होंने हिम्मत नहीं हारी। आज स्थिति यह है कि दोनों भाइयों की गिनती ग्वालियर के सबसे बड़े अंडा सप्लायर्स में होती है। अंचल के अंडा कारोबार में इनकी हिस्सेदारी 15-20% तक है और टर्न ओवर करोड़ों में है। हम बात कर रहे हैं ग्वालियर के अशोक विहार निवासी दो भाइयों शेर सिंह और शमशेर सिंह की।
करीब 20 साल पहले ग्रेजुएशन कंपलीट करने के बाद स्टार्टअप के रूप में इन्होंने मुर्गी फार्मिंग की शुरुआत की थी। इसके लिए उन्होंने जलालपुर क्षेत्र में करीब 7 बीघा जमीन ली। इस कारोबार में जानकारी और अनुभव न होने के कारण 5 साल तक घाटा उठाना पड़ा। बार-बार लोन, घर-रिश्तेदारों से आर्थिक मदद लेने पर भी स्थिति नहीं बदली। और मदद न मिलने पर बड़े भाई शेर सिंह की शादी में मिले दहेज की रकम को भी कारोबार में लगा दिया। इसके बाद कारोबार चल निकला।
जलालपुर के बाद दोनों भाइयों ने अमरोल और चीनौर में फार्मिंग सेंटर शुरू किया है। दोनों सेंटर एयर कंडीशंड हैं। शेर सिंह के अनुसार, तीनों सेंटरों में 1.20 लाख मुर्गियों का पालन कर रहे हैं और रोजाना 93 हजार अंडों का उत्पादन कर रहे हैं। आज ग्वालियर के अंडा मार्केट में इनकी हिस्सेदारी 15-20% तक है। वह कहते हैं, एसी फार्म के संचालन में लागत ज्यादा आती है। फिलहाल एसी फार्म में अंडे की लागत का आकलन कर रहे हैं। अंचल में रोजाना करीब 6 लाख अंडों की खपत है।
शमशेर सिंह कहते हैं, जब उन्होंने अंडों की सप्लाई शुरू की, तो कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। बाद में कारोबार में शामिल लोग एक टेबल पर आ गए। समझौते के बाद दोनों भाई प्रोडक्शन देखते हैं और अंडों की बिक्री का काम प्रतिस्पर्धी को सौंप दिया है।
बर्ड फ्लू और अन्य बीमारियां बाहर से आती हैं। एसी होने के बाद वायरस के पहुंचने पर मुर्गी को बचाना आसान नहीं होता।
डॉ. उपेन्द्र यादव, पशु चिकित्सक, चिड़ियाघर ग्वालियर