Hemant Nagle
27 Dec 2025
हर्षित चौरसिया, जबलपुर। जिन हाथों ने दशकों तक ऑपरेशन थिएटर में जीवन बचाने के लिए जटिल सर्जिकल उपकरणों को थामा, आज उन्हीं हाथों ने ब्रश और रंगों से ओरछा के ‘राम राजा सरकार’ की पूरी गाथा को मधुबनी पेंटिंग के रूप में जीवंत कर दिया है।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज, जबलपुर की पूर्व डीन और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रूपलेखा चौहान कहती हैं, 2017 में रिटायर होने से पहले ही उन्होंने कलात्मक यात्रा की शुरुआत ‘रंगों में विराजे राम’ नामक कृति से की थी। मरीजों के इलाज, ओपीडी और सर्जरी (ओटी) से जो भी वक्त बचता, उसे इस पेंटिंग को समर्पित कर देती। आखिरकार यह प्रोजेक्ट 2024 में पूरा हुआ।
बिहार की सुप्रसिद्ध मधुबनी शैली में भगवान राम के इस अनूठे चित्रण की उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी सराहना की थी। इसके बाद उन्होंने ओरछा के राजा राम पर काम शुरू किया। इसमें डेढ़ साल लगा। कुल 12 पेंटिंग्स का एल्बम तैयार किया है, जिसमें 6 ब्लैक एंड व्हाइट और 6 रंगीन कृतियां हैं। चित्रों के साथ उन्होंने पूरी कथा को समझने के लिए कविता भी लिखी है।
डॉ. चौहान के अनुसार, मैंने पेंटिंग्स में 16वीं शताब्दी की उस ऐतिहासिक घटना को उकेरा है, जिसने ओरछा को ‘राम राजा’ की नगरी बना दिया।
राजा-रानी का संवाद : ओरछा नरेश मधुकर शाह (कृष्ण भक्त) और रानी गणेश कुंवरी (राम भक्त) के बीच भक्ति को लेकर हुए संवाद ने इस यात्रा की नींव रखी।
कठोर तप और सरयू में छलांग : रानी ने अयोध्या जाकर सरयू किनारे कठोर तपस्या की। जब दर्शन नहीं हुए, तो सरयू में छलांग लगा दी, जहां उन्हें प्रभु राम का विग्रह प्राप्त हुआ।
शर्त और स्थापना : भगवान राम ने शर्त रखी थी कि वे जहां एक बार बैठ जाएंगे, वहां से नहीं उठेंगे और वे ही वहां के राजा कहलाएंगे। रानी ने चतुर्भुज मंदिर बनने तक मूर्ति अपने भोजन कक्ष (रसोई) में रख दी। शर्त के अनुसार, राम जी वहीं स्थापित हो गए और आज भी ओरछा में उन्हें राजा के रूप में ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ दिया जाता है।