Naresh Bhagoria
4 Dec 2025
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Manisha Dhanwani
4 Dec 2025
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उज्जैन। देशभर में दीपावली का पर्व सोमवार 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा, लेकिन उज्जैन के विश्व प्रसिद्ध महाकाल मंदिर में इस बार रूप चौदस और दिवाली एक साथ मनाई जाएगी। तिथियों के घटने-बढ़ने के कारण सुबह रूप चौदस और शाम को दिवाली का पर्व मनाया जाएगा। परंपरा के अनुसार, देशभर में सभी त्योहार सबसे पहले महाकालेश्वर मंदिर में ही मनाए जाते हैं।
सुबह तड़के भगवान महाकाल की भस्म आरती के दौरान अभ्यंग स्नान और उबटन श्रृंगार किया गया। शाम को पुजारी परिवार की महिलाओं ने फुलझड़ी जलाकर दीपोत्सव की शुरुआत करेंगी।

महाकाल मंदिर में वर्ष में केवल एक बार रूप चौदस के दिन पुजारी-पुरोहित परिवार की महिलाएं बाबा का श्रृंगार करती हैं। पुजारी परिवार की महिलाओं ने इस अवसर पर भगवान को केसर, चंदन, इत्र, खस और सफेद तिल से बना उबटन लगाया। यह श्रृंगार सुगंधित द्रव्यों से किया गया और इसके बाद विशेष कर्पूर आरती संपन्न की गई, जो परंपरानुसार केवल महिलाएं ही करती हैं।

पुजारी महेश गुरु ने बताया कि कार्तिक मास की चौदस से सर्दियों की शुरुआत मानी जाती है। इसलिए इस दिन से भगवान महाकाल को गर्म जल से स्नान (अभ्यंग स्नान) कराने की परंपरा शुरू होती है, जो महाशिवरात्रि तक जारी रहती है। भक्तों का विश्वास है कि इससे भगवान महाकाल सर्दी से सुरक्षित रहते हैं और भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद देते हैं।
दिवाली पर्व पर भगवान महाकाल को अन्नकूट का भोग लगाया जाएगा। इस भोग में धान, खाजा, शक्करपारे, गूंजे, पपड़ी, मिठाई, मूली और बैंगन की सब्जी सहित कई व्यंजन अर्पित किए जाएंगे। पुजारी महेश गुरु के अनुसार, यह परंपरा भगवान को मृत्युलोक के राजा के रूप में मानकर की जाती है, जो समृद्धि और फसल का प्रतीक है।

दिवाली के अवसर पर महाकाल मंदिर और महालोक परिसर को देश-विदेश से मंगाए गए फूलों से सजाया गया है। थाईलैंड, बैंकॉक, मलेशिया के अलावा बेंगलुरू, कोलकाता, दिल्ली और मुंबई से लाए गए एंथोरियम, लिली, कॉर्निशन, सेवंती और डेज़ी जैसे फूलों से मंदिर परिसर को सजाया गया है। विद्युत रोशनी और रंगोली से पूरा महालोक क्षेत्र जगमगा उठा है।
मंदिर प्रशासन ने बताया कि दिवाली पर केवल एक फुलझड़ी जलाने की परंपरा है। इसे भस्म आरती, संध्या आरती और शयन आरती के दौरान ही जलाया जाएगा। गर्भगृह, कोटितीर्थ कुंड और महाकाल महालोक परिसर में किसी भी प्रकार की आतिशबाजी या पटाखों के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। मंदिर परिसर में सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए हैं।