Aakash Waghmare
29 Dec 2025
Shivani Gupta
28 Dec 2025
Aakash Waghmare
28 Dec 2025
Shivani Gupta
28 Dec 2025
ढाका। बांग्लादेश की राजनीति के सबसे प्रभावशाली चेहरों में शामिल रहीं पूर्व प्रधानमंत्री और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की प्रमुख खालिदा जिया का सोमवार सुबह ढाका में निधन हो गया। वे 80 वर्ष की थीं और लंबे समय से गंभीर बीमारियों से जूझ रही थीं। उनका निधन ऐसे समय में हुआ है जब बांग्लादेश राजनीतिक अस्थिरता, कट्टरवाद और हिंसा के दौर से गुजर रहा है। देश में 12 फरवरी को आम चुनाव प्रस्तावित हैं। खालिदा जिया के जाने से बांग्लादेश की राजनीति में एक बड़े युग का अंत माना जा रहा है।
BNP ने अपने वेरिफाइड फेसबुक पेज पर जानकारी देते हुए बताया कि, खालिदा जिया का निधन सुबह करीब 6 बजे फज्र की नमाज के तुरंत बाद हुआ। पार्टी के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर और चेयरपर्सन के प्रेस विंग के अधिकारी शमसुद्दीन दीदार ने भी उनके निधन की पुष्टि की।
खालिदा जिया पिछले 20 दिनों से वेंटिलेटर पर थीं और ढाका के एवरकेयर अस्पताल के आईसीयू में उनका इलाज चल रहा था। विदेशी डॉक्टरों की एक टीम लगातार उनकी सेहत पर नजर रखे हुए थी।
खालिदा जिया का जन्म 15 अगस्त 1945 को अविभाजित भारत के बंगाल प्रेसिडेंसी के जलपाईगुड़ी में हुआ था। उनका मूल नाम खालिदा खानम पुतुल था। 1947 के विभाजन के बाद उनका परिवार दिनाजपुर चला गया।
उन्होंने दिनाजपुर मिशनरी स्कूल और गर्ल्स स्कूल में पढ़ाई की। वे खुद को स्व-शिक्षित मानती थीं और राजनीति में आने से पहले उनका कोई सक्रिय राजनीतिक जुड़ाव नहीं था।
खालिदा जिया की शादी पाकिस्तानी सेना के अधिकारी जियाउर रहमान से हुई थी। 1971 के मुक्ति संग्राम के बाद जियाउर रहमान बांग्लादेश के प्रभावशाली सैन्य और राजनीतिक नेता बने और 1977 में राष्ट्रपति बने।
इस दौरान खालिदा जिया 1977 से 1981 तक बांग्लादेश की प्रथम महिला रहीं। उनके दो बेटे हुए तारिक रहमान और अराफात रहमान हैं। अराफात रहमान की 2015 में हार्ट अटैक से मौत हो गई थी।
खालिदा जिया की राजनीति को भारत-विरोधी बांग्ला राष्ट्रवाद से जोड़कर देखा जाता रहा। उन्होंने 1972 की भारत-बांग्लादेश मैत्री संधि और गंगा जल समझौते का विरोध किया। 2013 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिलने से इनकार करना भी उनके भारत विरोधी रुख का प्रतीक माना गया। वहीं 2015 में बांग्लादेश दौरे के दौरान पीएम मोदी ने खालिदा जिया से मुलाकात की थी...
30 मई 1981 को जियाउर रहमान की सैन्य विद्रोह में हत्या कर दी गई। इस घटना ने खालिदा जिया की जिंदगी की दिशा बदल दी। 2 जनवरी 1982 को उन्होंने BNP की सदस्यता ली और 1984 में पार्टी की चेयरपर्सन बनीं। इसके बाद उन्होंने सैन्य शासक हुसैन मुहम्मद एरशाद के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया और लोकतंत्र की बहाली की प्रमुख आवाज बनीं।
खालिदा जिया तीन बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं।
1991-1996: पहली बार प्रधानमंत्री बनीं और देश की पहली महिला पीएम का इतिहास रचा। इस दौरान प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त और अनिवार्य किया गया।
फरवरी 1996: दूसरा कार्यकाल कुछ समय के लिए रहा।
2001-2006: तीसरे कार्यकाल में उनके चार-दलीय गठबंधन को संसद में दो-तिहाई बहुमत मिला।
बांग्लादेश की राजनीति दशकों तक खालिदा जिया और अवामी लीग नेता शेख हसीना के इर्द-गिर्द घूमती रही। दोनों नेताओं की प्रतिद्वंद्विता को मीडिया ने “बैटल ऑफ बेगम्स” नाम दिया। 1990 के बाद हुए अधिकांश चुनावों में सत्ता या तो खालिदा जिया के पास रही या शेख हसीना के हाथ में गई। यह टकराव व्यक्तिगत, राजनीतिक और वैचारिक स्तर पर लगातार गहराता गया।
2018 में खालिदा जिया को जिया ऑर्फनेज ट्रस्ट और चैरिटेबल ट्रस्ट मामलों में दोषी ठहराया गया। उन्हें कई साल की सजा सुनाई गई। उन पर 32 से अधिक केस दर्ज हुए। 2020 में कोरोना महामारी के दौरान उन्हें जमानत मिली, लेकिन तब से उनकी सेहत लगातार बिगड़ती रही।
खालिदा जिया समर्थकों के लिए लोकतंत्र की प्रतीक थीं, जबकि आलोचक उन्हें विवादास्पद नेता मानते रहे। उनके निधन से बांग्लादेश की राजनीति में एक ऐसा अध्याय बंद हो गया है, जिसने देश की दिशा और दशकों तक की राजनीति को परिभाषित किया।