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धर्म डेस्क। भारत में दिवाली का त्योहार खुशियों, रौशनी और मां लक्ष्मी की पूजा का प्रतीक माना जाता है। लेकिन इसी पावन त्योहार के पीछे एक ऐसा काला सच भी है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। हर साल दिवाली के करीब आते ही उल्लुओं पर खतरा मंडराने लगता है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, उल्लू मां लक्ष्मी की सवारी है। कुछ लोग मानते हैं कि दिवाली की रात उल्लू को देखना या उसकी पूजा करना शुभ होता है। वहीं तंत्र-मंत्र में विश्वास रखने वाले लोग यह सोचते हैं कि दिवाली की रात अगर उल्लू की बलि दी जाए तो लक्ष्मी जी हमेशा घर में वास करती हैं। इसी अंधविश्वास के कारण तस्कर उल्लुओं को पकड़कर काले बाजार में बेचते हैं।
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और बंगाल जैसे राज्यों में दिवाली से पहले उल्लुओं की तस्करी सबसे ज्यादा होती है। इनकी कीमत हजारों से लेकर लाखों रुपए तक लगाई जाती है।
दिवाली आने के पहले ही उल्लू जंगलों से पकड़ लिए जाते हैं। इन्हें अंधेरे कमरों में रखा जाता है और तांत्रिक विधियों से तैयार किया जाता है। कहा जाता है कि कुछ तांत्रिक लोग उल्लू को शराब और मांस खिलाते हैं और फिर दिवाली की रात उसकी बलि देते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से लक्ष्मी और अलक्ष्मी के बीच संतुलन बना रहता है।
भारत में उल्लू को भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 में शामिल किया गया है। इसका मतलब है कि उल्लू को पकड़ना, बेचना या मारना पूरी तरह गैरकानूनी है। फिर भी हर साल दिवाली के समय उल्लुओं की तस्करी और बलि की खबरें सामने आती रहती हैं। अगर कोई इस अपराध में पकड़ा जाता है, तो उसे तीन साल तक की सजा और भारी जुर्माना हो सकता है।