Aniruddh Singh
28 Sep 2025
जबलपुर। मध्य प्रदेश के जबलपुर जिला अदालत ने शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को मानहानि मामले में तलब किया है। अदालत ने उन्हें 12 नवंबर 2025 को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के निर्देश दिए हैं। यह कार्रवाई तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य के शिष्य द्वारा दायर परिवाद पर की गई है। आरोप है कि शंकराचार्य ने एक टीवी इंटरव्यू के दौरान रामभद्राचार्य और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विवादित और अपमानजनक बयान दिए थे।
परिवाद के अनुसार, 28 अगस्त 2025 को एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य की गवाही को “झूठ का प्रोपेगैंडा” बताते हुए कहा कि उनकी गवाही सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में अमान्य घोषित की गई थी, इसलिए राम मंदिर से जुड़े फैसलों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। उन्होंने यह भी कहा कि शास्त्रों के अनुसार अंधे व्यक्ति को आचार्य जगद्गुरु नहीं माना जा सकता, जो कथित तौर पर रामभद्राचार्य के शारीरिक दोषों पर टिप्पणी थी।
परिवाद में यह भी आरोप लगाया गया है कि शंकराचार्य ने इंटरव्यू के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गौ हत्यारा बताया और राष्ट्रपति के आदेशों पर सवाल खड़े किए। परिवादी का कहना है कि इन टिप्पणियों से सामाजिक सौहार्द को ठेस पहुंच सकती है और धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं।
यह परिवाद तुलसीपीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य के शिष्य और बीएसएनएल के सेवानिवृत्त कर्मचारी नेता रामप्रकाश अवस्थी ने दायर किया है। परिवाद में आरोप लगाया गया है कि शंकराचार्य का यह बयान भारतीय न्याय संहिता (BNS) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) की विभिन्न धाराओं के तहत दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है।
रामप्रकाश अवस्थी ने अपने परिवाद में भारतीय न्याय संहिता की धारा 256, 399 और 302 सहित आईटी एक्ट की धारा 66A और 71 के तहत शंकराचार्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की है। अदालत ने मामले को गंभीर मानते हुए नोटिस जारी किया और शंकराचार्य को 12 नवम्बर को व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने का आदेश दिया है।
अदालत की ओर से नोटिस जारी होने के बाद अब 12 नवम्बर को शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को कोर्ट में पेश होना होगा। पेशी के दौरान यह तय होगा कि आगे की सुनवाई और संभावित कार्रवाई किस दिशा में आगे बढ़ेगी। फिलहाल पुलिस और साइबर सेल इस मामले की तकनीकी जांच कर रहे हैं, ताकि इंटरव्यू और बयानों के डिजिटल साक्ष्य एकत्रित किए जा सकें।
यह मामला धार्मिक और राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। एक ओर जहां रामभद्राचार्य के समर्थक इसे सनातन धर्म और गुरु परंपरा के अपमान के रूप में देख रहे हैं, वहीं शंकराचार्य के समर्थक इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा बता रहे हैं। कोर्ट की आगामी सुनवाई इस विवाद की अगली दिशा तय करेगी।