Manisha Dhanwani
5 Oct 2025
गुना। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष में मनाए जा रहे विजयदशमी उत्सव के अवसर पर गुना नगर का वातावरण राष्ट्रभक्ति, संस्कृति और संगठन की शक्ति से ओतप्रोत रहा। गुना नगर के केशव उपनगर और श्रीराम उपनगर की विभिन्न बस्तियों से स्वयंसेवकों के अनुशासित पथ संचलन निकले।
प्रत्येक संचलन में स्वयंसेवक भारत माता की जय और वंदे मातरम् के उद्घोष के साथ पूर्ण अनुशासन और उत्साह से नगर की गलियों से गुजरे। जब दोनों उपनगरों के संचलनों का संगम हुआ, तो यह दृश्य अत्यंत भव्य और प्रेरणादायी रहा। विभिन्न दिशाओं से आ रहे संचलनों का एक साथ मिलन देखकर नगरवासी अभिभूत हो उठे।
संचलन मार्गों पर जगह-जगह नागरिकों ने पुष्पवर्षा कर स्वयंसेवकों का स्वागत किया। कई स्थानों पर “राम जी की सेना चली” जैसे गीतों पर साउंड सिस्टम के माध्यम से वातावरण भक्तिभाव से भर गया। माता-बहनों ने घरों के बाहर रंगोली, दीप और फूलों से मार्ग सजाकर सनातन संस्कृति का सजीव उदाहरण प्रस्तुत किया।
बूढ़े बालाजी मंदिर हॉल में संपन्न समापन कार्यक्रम में संत सुरेश महाराज, उपनगर कार्यवाह दिनेश कुशवाहा तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विभाग संपर्क प्रमुख गोपाल स्वर्णकार मंचासीन रहे। मुख्य वक्ता गोपाल स्वर्णकार ने कहा- भारत उत्सवों की भूमि है। हमारे देवता शस्त्र धारण करते हैं क्योंकि उनका उद्देश्य विनाश नहीं, बल्कि संरक्षण और संस्कृति की रक्षा है। शक्ति के बिना शांति की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए संघ शस्त्र और शास्त्र दोनों की साधना का संदेश देता है।
डॉ. हेडगेवार ने विजयदशमी को स्थापना दिवस इसलिए चुना ताकि हर पीढ़ी में धर्म की विजय और अधर्म से संघर्ष की भावना सजीव रहे। उन्होंने कहा कि संघ आज विश्व के अनेक देशों में धर्म, संस्कृति और विश्वकल्याण की भावना से कार्य कर रहा है और शताब्दी वर्ष में संघ का लक्ष्य है- हर हिंदू घर से एक स्वयंसेवक।
नसिया, बिजी रोड पर हुए समापन में नगर संघचालक महेंद्र संधू, विजय जैन (भारतीय जैन मिलन समाज के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वर्तमान संरक्षक, गुना) तथा जितेंद्र गुर्जर (अखिल भारतीय संगठन मंत्री, बनवासी मजदूर संघ) उपस्थित रहे।
मुख्य वक्ता जितेंद्र गुर्जर ने कहा- विजयदशमी केवल सत्य की असत्य पर विजय का प्रतीक नहीं, बल्कि राष्ट्र की शक्ति, समाज की एकता और संस्कृति की रक्षा का संकल्प दिवस है। संघ समाज को संगठित, सशक्त और सम्राट बनाने की दिशा में निरंतर कार्यरत है। सनातन संस्कृति की यह परंपरा हमें बताती है कि जब-जब अधर्म बढ़ा है, तब धर्म ने स्वयं को संगठित कर विजय प्राप्त की है।”
समापन अवसर पर नगर के अनेक गणमान्य नागरिक, समाज के वरिष्ठजन, मातृशक्ति, बाल स्वयंसेवक एवं युवा वर्ग बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। पूरे नगर में आज का दिन धर्म, संगठन और संस्कृति की जयघोष से गुंजायमान रहा।