Shivani Gupta
10 Dec 2025
वॉशिंगटन डीसी। अमेरिका और भारत के रिश्तों में चल रही दरार अब खुले मंच पर चर्चा का विषय बन गई है। US-India Relations को लेकर बढ़ती चिंता अमेरिकी कांग्रेस में भी गूंज रही है। अमेरिकी सांसदों के मुताबिक, वॉशिंगटन की दबाव वाली नीति न केवल US-India Relations को कमजोर कर रही है, बल्कि भारत को रूस के और करीब ले जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की कार में ली गई सेल्फी ने इस भू-राजनीतिक तनाव को नए सिरे से उभार दिया है। कांग्रेस में इसे सिर्फ एक तस्वीर नहीं, बल्कि एक चेतावनी के रूप में पेश किया गया कि, अगर मौजूदा नीति जारी रही, तो US-India relations को दीर्घकालिक नुकसान झेलना पड़ सकता है।
अमेरिकी कांग्रेस की एक महत्वपूर्ण सुनवाई के दौरान डेमोक्रेट सांसद सिडनी कैमलेगर-डोव ने एक बड़ा पोस्टर उठाया, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की सेल्फी लगी थी। उन्होंने कहा कि, यह सिर्फ एक फोटो नहीं है, यह संदेश है कि भारत और रूस के बीच व्यक्तिगत और राजनीतिक रिश्ते कितने मजबूत हैं।
मसले की गंभीरता बढ़ाते हुए उन्होंने साफ कहा कि, अमेरिका की हालिया रणनीति भारत को रूस के और करीब धकेल रही है। उनका आरोप था कि, भारतीय नेतृत्व पर दबाव डालने की वॉशिंगटन की नीति उलटा असर कर रही है, जिसका खामियाजा दोनों देशों के रिश्तों को भुगतना पड़ेगा।
सांसद कैमलेगर-डोव ने कहा कि, पिछले कुछ महीनों में अमेरिकी प्रशासन ने ऐसे कदम उठाए हैं जिनसे भारत का रणनीतिक भरोसा कमजोर हुआ है। उन्होंने कहा कि, यह अमेरिका है, भारत नहीं, जो रिश्तों को नुकसान पहुँचा रहा है।
उनका तर्क था कि, भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और अमेरिका के लिए बेहद महत्वपूर्ण साझेदार। ऐसे में दबाव की नीति अपनाना रणनीतिक और राजनीतिक दोनों स्तरों पर गलत कदम है।
यह तस्वीर उस वक्त ली गई थी जब व्लादिमीर पुतिन पालम एयरपोर्ट से सीधे प्रधानमंत्री मोदी के साथ कार में बैठकर उनके आवास पहुंचे थे। यह पुतिन का रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत का पहला दौरा था, जिसे बेहद अहम माना गया।
पुतिन ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि, कार में साथ जाना उनका खुद का सुझाव था। इसे दोनों नेताओं के बीच निजी रिश्ते की गर्माहट का संकेत माना गया। अमेरिका में भी यही सवाल उठाया गया कि अगर रूस-भारत रिश्ते इतनी सहजता से आगे बढ़ रहे हैं, तो अमेरिका को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना चाहिए।
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सांसद ने कहा कि, भारत सिर्फ एक साझेदार नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन का सबसे अहम स्तंभ है। यदि भारत और अमेरिका के बीच अविश्वास बढ़ता गया, तो इसका असर दशकों तक दिखाई देगा। उन्होंने साफ चेतावनी दी कि, आप नोबेल शांति पुरस्कार नहीं जीत सकते, अगर अपने रणनीतिक पार्टनर को विरोधी देशों की तरफ धकेल दें। यह बयान अमेरिकी प्रशासन के लिए सीधा संदेश था कि, वर्तमान नीति भारत के साथ दीर्घकालिक रिश्तों के लिए हानिकारक है।
विशेषज्ञों का मानना है कि, मौजूदा परिस्थितियों में भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को सबसे ऊपर रख रहा है। भारत रूस से रक्षा, ऊर्जा और तकनीकी सहयोग बढ़ा रहा है, जबकि अमेरिका मानवाधिकार, व्यापार और भू-राजनीतिक दबाव की भाषा अपना रहा है। अमेरिकी सांसद का बयान इस बात का संकेत है कि, वॉशिंगटन के भीतर भी यह समझ बन रही है कि भारत पर दबाव डालना एक गलत रणनीति है, जो उसे रूस के तरफ और झुका सकती है।
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