Naresh Bhagoria
24 Nov 2025
Naresh Bhagoria
23 Nov 2025
संजय कुमार तिवारी, जबलपुर। जंगलों की पगडंडियों पर पले-बढ़े, बिजली-पानी के अभाव से जुझते महाकोशल के आदिवासी अंचल के बच्चे अब आधुनिक तकनीक की राह पर नई पहचान गढ़ रहे हैं। छोटे शहरों के युवाओं ने साबित कर दिया है कि प्रतिभा न तो संसाधनों की मोहताज है और न ही बड़े शहरों की। पढ़िए अंचल के आदिवासी जिलों मंडला और डिंडौरी के ऐसे ही बच्चों की कहानी, जो हुनर को धार दे रहे हैं। मंडला के निर्मला सीनियर सेकंडरी स्कूल की 10वीं कक्षा की छात्राओं-अनामिका पांडे, देवाशी रोस्था और नित्या सोनी ने AI और लाइफ टेक्नोलॉजी आधारित कंप्यूटर विजन प्रोजेक्ट तैयार किया है। यह हवा में उंगली से लिखे अक्षरों को पहचानकर तुरंत स्क्रीन पर प्रदर्शित कर सकता है। प्रोजेक्ट में AI, इमेज प्रोसेसिंग और सेंसर तकनीक का संयोजन किया गया है। यूथ फेस्टिवल में उनके प्रोजेक्ट को जिले में पहला स्थान मिला है। यह तकनीक भविष्य में टचलेस इंटरफेस, स्मार्ट क्लासरूम और विशेष दिव्यांग बच्चों की शिक्षा में बेहद उपयोगी साबित हो सकती है।
छात्राओं के अनुसार, ‘आयरनमैन’ फिल्म देखकर आइडिया आया था। हमने अपने साइंस के शिक्षक आदर्श सर और शुभम सर से चर्चा की। दोनों के मार्गदर्शन में प्रोजेक्ट तैयार किया। हमारा यह पहला प्रयास था।
स्कूल के साइंस टीचर आदर्श तिवारी, शुभम चौरसिया बताते हैं छात्राओं ने मॉडल के बारे में बात की। काफी डिस्कशन के बाद तय हुआ कि एआई और लाइफ टेक्नोलॉजी आधारित कंप्यूटर विजन प्रोजेक्ट पर काम करेंगे।

डिंडौरी जिले के शहपुरा क्षेत्र के छोटे से गांव करौंदी के शिवम साहू ने सीमित संसाधनों में सर्विंग रोबोट बनाकर सभी को हैरान कर दिया। उन्होंने पुरानी मोटर, तार, सेंसर और जुगाड़ के इलेक्ट्रॉनिक सामान से यह मशीन तैयार की है। यह रोबोट वस्तुओं को एक से दूसरी जगह ले जाने में सक्षम है। शिवम ने बताया, वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है। यह रोबोट सेंसर की मदद से सामने आने वाली बाधाओं का अंदाजा लगा लेता है। इसे घरेलू उपयोग, छोटे होटलों या ऑफिसों में इस्तेमाल किया जा सकता है।