
भोपाल में भारतीय सांस्कृतिक परंपरा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले संस्कृति पुरुष पं. सुरेश तांतेड़ का सोमवार अपराह्न 3 बजे दुखद निधन हो गया। 81 वर्षीय पं. तांतेड़ पिछले एक वर्ष से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। हाल ही में श्वास संबंधी तकलीफ बढ़ने के बाद उन्हें बड़े चिकित्सा संस्थान में भर्ती कराया गया था। परिवारजनों और शिष्यों के लिए यह एक अत्यंत हृदयविदारक क्षण बन गया।
अंतिम समय तक अपने मिशन में सक्रिय रहे
अपने जीवन के अंतिम समय तक पं. तांतेड़ सांस्कृतिक आयोजनों की तैयारी में जुटे रहे। 14 जून को प्रस्तावित सम्मान समारोह और 12 जुलाई को आयोजित होने वाले गुरु वंदना महोत्सव की तैयारियाँ वे पूरी कर चुके थे। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।
संपूर्ण परिवार को छोड़कर चले गए पं. तांतेड़
पं. सुरेश तांतेड़ अपने पीछे पत्नी, पुत्र अतुल तांतेड़, पुत्री, भाइयों और नाती-पोतों से भरा-पूरा परिवार छोड़कर इस दुनिया से विदा हो गए। उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार मंगलवार को किया जाएगा।
शुजालपुर में हुआ जन्म
पं. सुरेश तांतेड़ का जन्म 25 दिसंबर 1944 को मध्यप्रदेश के शाजापुर जिले के शुजालपुर कस्बे में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन में हुई, जहाँ उन्होंने तबला वादन की शिक्षा भी ग्रहण की। 1963 में उन्होंने भोपाल को अपनी कर्मभूमि बनाया और संगीत व संस्कृति को समर्पित जीवन का सूत्रपात किया।
‘अभिनव कला परिषद’ और ‘मधुवन’ के संस्थापक
पं. तांतेड़ ने अपने संगीत प्रेमी साथियों के साथ मिलकर पहले ‘यूथ कल्चरल सोसायटी’ की स्थापना की, जिसे बाद में ‘अभिनव कला परिषद’ नाम दिया गया। इस संस्था ने 62 वर्षों में 400 से अधिक सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से 4000 से ज्यादा कलाकारों को मंच प्रदान किया। इस उत्कृष्ट सेवा के लिए परिषद को मध्यप्रदेश शासन द्वारा ‘राजा मानसिंह तोमर राष्ट्रीय सम्मान’ भी प्राप्त हुआ।
वहीं 1970 में गुरु-शिष्य परंपरा को पुनर्जीवित करते हुए उन्होंने ‘मधुवन’ संस्था की स्थापना की, जिसमें प्रतिवर्ष गुरु पूर्णिमा के अवसर पर विविध कलाओं के श्रेष्ठ गुरुओं को सम्मानित किया जाता रहा।
महाकालेश्वर संगीत समारोह के जरिए उज्जैन में गूंजता रहा संगीत
1993 में पं. तांतेड़ ने उज्जैन में भारतीय सनातन सांस्कृतिक मंदिर महोत्सव के अंतर्गत महाकालेश्वर संगीत समारोह की भी परंपरा शुरू की। यह आयोजन भी पिछले 50 वर्षों से अधिक समय से निरंतर जारी है। उनके अथक प्रयासों ने भोपाल व मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक पहचान को राष्ट्रीय मंच पर प्रतिष्ठित कर दिया।
पत्नी के गहने गिरवी रख कलाकारों को दिया मानदेय
धनाभाव में भी पं. तांतेड़ ने कभी अपने कर्तव्य से समझौता नहीं किया। कलाकारों को मानदेय देने के लिए उन्होंने अपनी पत्नी के गहनों तक को गिरवी रखा। उनका समर्पण और निष्ठा पूरे सांस्कृतिक जगत के लिए प्रेरणास्रोत है।
अखिल भारतीय साहित्य संस्कृति पुरस्कार सम्मानित
पं. तांतेड़ को कोटा में भारतेंदु समिति द्वारा ‘आचार्य हनुमान प्रसाद सक्सेना स्मृति अखिल भारतीय साहित्य संस्कृति पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। साथ ही पद्म भूषण पं. विश्व मोहन भट्ट ने उन्हें ‘पंडित’ की उपाधि से विभूषित किया।
उनके निधन पर राजस्थान के कई प्रमुख कलाकारों ने गहरी शोक संवेदना प्रकट की। पं. विश्व मोहन भट्ट, प्रो. राजेन्द्र माहेश्वरी, प्रेरणा शर्मा, संगीता सक्सेना, राजीव मल्होत्रा, डॉ. संतोष कुमार मीना, डॉ. ऊषा खंडेलवाल, आस्था सक्सेना, महूराज राव सहित अनेक कलाकारों ने श्रद्धांजलि अर्पित की।
संगीत संसार ने खोया एक महान स्तंभ
पं. सुरेश तांतेड़ का निधन भारतीय सांस्कृतिक जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। उनके द्वारा स्थापित संस्थाएं और सांस्कृतिक परंपराएँ आने वाली पीढ़ियों को निरंतर प्रेरित करती रहेंगी।