Naresh Bhagoria
18 Nov 2025
ग्वालियर। चंबल नदी कई मामलों को लेकर विख्यात है, कभी यहां डकैतों की शरण स्थली रही तो अब मांसाहारी कछुए, डॉल्फिन, घड़ियाल और मगर के अलावा कई प्रवासी पक्षी डेरा डालने आते हैं। इस साल फरवरी से मार्च माह तक चली जलीय जीवों की गणना में फॉरेस्ट विभाग सामान्यत: कछुओं की गणना नहीं करता है। हालांकि चंबल में बहुतायत मात्रा में कछुए पाए जाते हैं। इनमें मांसाहारी कछुओं की संख्या भी काफी होती है। एक आंकलन के अनुसार चंबल नदी में वर्तमान में 4000 से अधिक कछुओं मौजूदगी मानी जा रही हैं। इनमें शाकाहारी और मांसाहारी दोनों की बराबर संख्या है।
जलीय जीवों की गणना 10 से 28 फरवरी तक कराई गई थी, लेकिन इसमें कछुए शामिल नहीं थे। चंबल अभयारण्य के अधीक्षक भूरा गायकवाड़ का कहना है कि प्रदेश का फॉरेस्ट विभाग कछुआ की गणना कभी नहीं करता है। चंबल नदी को स्वच्छ रखने वाले और सारी गंदगी स्वयं खाने वाले इन मांसाहारी कछुओं की सुरक्षा का सबसे बड़ा सवाल है, इसीलिए इनकी गणना नहीं कराई जाती है और इनकी हैचरी पर 24 घंटे सुरक्षा बल मौजूद रहता है। अभी चार स्थानों पर अस्थायी रूप से कछुओं की हैचरी बनाई गई है, जब इन्हें स्वस्थ माना जाता है तब चंबल नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है।
चंबल में कछुओं की संख्या की कभी गणना नहीं कराई गई। इनकी संख्या के बारे में फॉरेस्ट विभाग को पता नहीं है। -भूरा गायकवाड़, अधीक्षक चंबल अभयारण्य