पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने अपने विचारों को स्पष्ट करते हुए कहा कि उन्हें वाइफ नहीं, अर्धांगिनी चाहिए। उन्होंने अपनी भावी जीवनसाथी के लिए कोई ज्यादा मंथन नहीं किया है, बल्कि उनकी प्राथमिकता एक समझदार और परिवार के साथ तालमेल बैठाने वाली महिला होगी। शास्त्री ने बताया कि उन्हें शादी के कई प्रस्ताव मिले थे, जिनमें एक 40-42 साल की महिला ने तो अपने पति को तलाक देकर उनसे शादी का प्रस्ताव रखा था।
पंडित शास्त्री ने एक और चौंकाने वाली घटना का जिक्र किया, जिसमें एक महिला भक्त ने तीन साल से पूजा और व्रत रखने का हवाला देते हुए शादी की मांग की। जब उनकी बात नहीं मानी गई, तो महिला ने खुदकुशी करने का प्रयास किया और नस काट ली। शास्त्री ने बताया कि महिला ने बारात की तारीख मांगी थी, लेकिन नहीं मिलने पर उसने यह कदम उठाया। पंडित शास्त्री ने कहा कि यह घटना बहुत डरावनी थी, लेकिन मुश्किल से मामला शांत हुआ।
पंडित शास्त्री ने प्रेम और जाति के बारे में भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जहां प्रेम होता है, वहां न नाम होता है और न समय। प्रेम में जाति-पाति और सामाजिक बंधन समाप्त हो जाते हैं। उनका मानना है कि प्रेम ही सबसे बड़ी ताकत है, और अगर कोई सच्चा प्रेम करता है तो जाति और धर्म की कोई अहमियत नहीं रह जाती।
जब पंडित शास्त्री से औरंगजेब के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि देश को तोड़ने वालों का नामो-निशान मिटा देना चाहिए। उनका मानना था कि जिसने देश को तोड़ा, वह कभी महान नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि जिन लोगों को औरंगजेब की कब्र से प्रेम है, वे उसे अपने घर में रख सकते हैं, लेकिन ऐसा विचार समाज पर थोपना गलत है।
पंडित शास्त्री ने कहा कि कंस को हमारे इतिहास में एक विलेन के तौर पर देखा जाता है, और ठीक वैसे ही औरंगजेब को भी हीरो के रूप में नहीं देखा जा सकता। उन्होंने कहा कि हालांकि इतिहास में बदलाव नहीं किया जा सकता, लेकिन सुधार किया जा सकता है। औरंगजेब के बारे में उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति ने संभाजी महाराज के साथ बर्बरता की, उसकी यादें मिटा देना चाहिए।
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