Manisha Dhanwani
5 Nov 2025
नई दिल्ली। पतंजलि और डाबर के बीच विवाद ने नया मोड़ ले लिया है। डाबर इंडिया द्वारा दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को पतंजलि को निर्देश दिया है कि वह डाबर के च्यवनप्राश के खिलाफ कोई भी नकारात्मक या भ्रामक विज्ञापन न दिखाए। न्यायमूर्ति मीनी पुष्कर्णा की अदालत ने कहा कि, जब तक अगली सुनवाई नहीं होती, पतंजलि किसी भी प्रकार के ऐसे विज्ञापन से दूर रहे जो डाबर के उत्पाद की छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं। मामले में अगली सुनवाई 14 जुलाई को होगी।
डाबर इंडिया की ओर से वरिष्ठ वकील संदीप सेठी ने कोर्ट में तर्क दिया कि पतंजलि अपने विज्ञापनों में उनके च्यवनप्राश को “सामान्य” बताकर न केवल छवि को खराब कर रहा है, बल्कि उपभोक्ताओं को भी भ्रमित कर रहा है। उन्होंने कोर्ट को बताया कि डाबर के च्यवनप्राश में 40 से ज्यादा आयुर्वेदिक औषधियाँ होती हैं और वह 60% मार्केट शेयर के साथ अग्रणी ब्रांड है। ऐसे में पतंजलि का यह कहना कि “जिन्हें वेदों और आयुर्वेद का ज्ञान नहीं, वे पारंपरिक च्यवनप्राश नहीं बना सकते” – पूरी तरह डाबर पर सीधा हमला है।
डाबर ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि पतंजलि के विज्ञापन में स्वयं बाबा रामदेव यह दावा करते दिखाई दे रहे हैं कि अन्य ब्रांड्स का च्यवनप्राश आयुर्वेदिक नहीं है और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है। डाबर का कहना है कि, इस प्रकार के बयान ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट और उपभोक्ता संरक्षण कानून का उल्लंघन करते हैं, और इससे उपभोक्ताओं में भ्रम पैदा होता है।
इससे पहले अप्रैल 2024 में बाबा रामदेव ने शरबत की एक ब्रांड पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि “शरबत जिहाद” चल रहा है। यह बयान सोशल मीडिया पर विवाद का विषय बना। हमदर्द कंपनी, जो ‘रूह अफजा’ शरबत बनाती है, ने इस पर दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने रामदेव के बयान को “माफी लायक नहीं” कहा और सख्ती से सभी ऐसे वीडियो हटाने का आदेश दिया।
डाबर की याचिका में यह भी कहा गया कि कोर्ट के समन के बावजूद पतंजलि ने सिर्फ एक सप्ताह में 6182 बार वही भ्रामक विज्ञापन प्रसारित किया, जो डाबर के प्रोडक्ट को निशाना बना रहा था।
अदालत ने स्पष्ट कहा है कि जब तक अगली सुनवाई नहीं होती, पतंजलि किसी भी भ्रामक, आपत्तिजनक या अपमानजनक विज्ञापन का प्रसारण या प्रकाशन नहीं कर सकती। यह आदेश विशेष रूप से डाबर च्यवनप्राश से संबंधित है। डाबर इंडिया के अनुसार, वे पारंपरिक और प्रमाणिक आयुर्वेदिक उत्पाद बनाते हैं, जिन्हें वैज्ञानिक मानकों के अनुसार विकसित किया जाता है।