मनीष दीक्षित/भोपाल। मध्य प्रदेश को विकास के लिए अब केंद्र सरकार का ही सहारा है। क्योंकि राज्य सरकार की स्वयं की आमदनी का लगभग 96 प्रतिशत अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन, पेंशन और कर्ज का ब्याज चुकाने पर खर्च हो जाएगा। उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा द्वारा पेश किए गए वर्ष 2024- 2025 के बजट के आंकड़े बताते हैं कि केंद्रीय करों में हिस्सेदारी व अनुदान का सहारा राज्य की अर्थ व्यवस्था को नहीं होता तो राज्य सरकार के सामने अपनी ही घोषणाओं को पूरा करने में समस्या खड़ी हो जाती। इसकी वजह सरकार पर वेतन, पेंशन के साथ ही ब्याज चुकाने का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है, जबकि आय के साधन सीमित हैं। शायद यही कारण है सरकार के ही एक बजट दस्तावेज में करों के आधार को बढ़ाने और उनके संग्रहण में और अधिक कसावट लाने की बात कही गई है। यह सही है कि इस बार बजट में सभी विभागों का बजट आवंटन में भी बढ़ोतरी हुई है इसलिए सरकार ने सामाजिकआर्थ् िाक और इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र की योजनाओं के लिए भी भरपूर राशि का प्रावधान किया है।
अगर राज्य सरकार के पास केंद्र के सहायक अनुदान और केंद्रीय करों में प्रदेश के हिस्से का सहारा नहीं होता तो विकास के कार्यों में अड़चन आ सकती है। केंद्रीय करों में प्रदेश की हिस्सेदारी के तहत प्रदेश को 95,752 करोड़ की राशि मिलने की उम्मीद है। इसी प्रकार केंद्रीय अनुदान भी 44,891 करोड़ होगा। यानि बजट 3 लाख 65 हजार करोड़ से ऊपर पहुंचने के बाद भी वित्तीय संसाधनों की कमी है और इसके लिए केंद्र सरकार पर निर्भरता और बढ़ गई है। हालांकि डबल इंजन की सरकार होने के कारण केंद्र से कोई अड़ंगा नहीं लगेगा।
किसी भी अर्थव्यवस्था के सुचारू संचालन के लिए राजस्व और पूंजीगत व्यय के बीच भी सामंजस्य दिखना चाहिए और प्रयास किए जाने चाहिए जिससे राजस्व व्ययों में कमी आए। हालांकि प्रदेश के आंकड़े कुछ और बयां कर रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि सरकार का राजस्व व्यय तेजी से बढ़ा है और पूंजीगत व्यय में कमी आई है। इस वित्तीय वर्ष में प्रदेश के राजस्व व्यय 2,61,644 करोड़ अनुमानित है जो पिछले वर्ष की तुलना में 15. 62 प्रतिशत बढ़ा है। पूंजीगत व्यय मात्र 61,633 करोड़ होना अनुमानित है जो पिछले वर्ष के पुनरीक्षित अनुमान से 8. 25 प्रतिशत कम है।
डिप्टी सीएम देवड़ा को भी भरोसा है कि केंद्र का आशीर्वाद प्रदेश को मिलता रहेगा । शायद यही वजह है सरकार को ओवर ड्राμट की स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा। यह अनुकूल स्थिति है। राज्य की विकास दर भी राष्ट्रीय औसत से अधिक होना सुखद है, परंतु इस वृद्धि में प्राथमिक क्षेत्र की हिस्सेदारी अधिक होना यह बताता है कि तमाम प्रयासों के बावजूद उद्योग और सेवा क्षेत्र में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो रही है।
वित्त ने इस बजट में विभागों के लिए समुचित राशि का प्रावधान तो है, लेकिन इसका हाल की परिस्थितियों के लिहाज से विश्लेषण किया जाए तो यह साफ दिखाई देता है कि वित्त मंत्री ने एक बार फिर बजटीय आवंटन पर ही लक्ष्य केन्द्रित किया। इसकी उपयोगिता सुनिश्चित करने पर भी उन्होंने ध्यान नहीं दिया, जो आज की परिस्थितियों में अधिक उपयोगी है।
ऐसे समझें बजट का गणित