Aakash Waghmare
5 Dec 2025
Naresh Bhagoria
5 Dec 2025
नई दिल्ली। यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि इंडिगो जो लंबे समय से भारत के सबसे भरोसेमंद पहचान वाले ब्रांडों में रहा है आज बिखर रहा है। एक अनुशासित और प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में तेज विमान टर्नअराउंड करने वाली कंपनी जिसने आंकड़ों में प्रमाणित समय पालन का एक ऐसा अनुभव दिया, जिसने समय पर पहुंचने को सेवा की गुणवत्ता में बदल दिया। ग्राहकों ने इंडिगो को सजावट या तामझाम के लिए नहीं चुना; उन्होंने इसे इसलिए चुना, क्योंकि बुनियादी चीजें ठीक से काम करती थीं। कम किराए का विचार तो बाद में परिभाषित हुआ। जो सबसे पहले बना, वह भरोसा था। इंडिगो सिर्फ एक एयरलाइन का संचालन नहीं कर रहा था वस्तुत: उसने एक परंपरागत रूप से अव्यवस्थित श्रेणी में स्थिरता का निर्माण किया।
बीते कुछ दिनों में जो हुआ है वह बाहरी झटके जैसा नहीं लगता। न कोई मानसून बाधा, न घना कोहरा, न अचानक हवाई क्षेत्र बंद। बल्कि यह लंबे समय से पनपती वह थकान है जो नियमों में हुए बदलाव के साथ तालमेल न बैठा पाने वाले स्टाफिंग चक्र, खराब शेड्यूलिंग, और अपनी स्वाभाविक क्षमता से बाहर तक खिंचा हुआ नेटवर्क झेल ना सका। विमानन में अस्थिरता धीरे-धीरे नहीं आती बल्कि वह एक झटके में दिखाई देती है। यह हिमनद पिघलने जैसा नहीं बल्कि भूस्खलन जैसा क्षण होता है। और जब ऐसा होता है, यात्रियों को केवल व्यवधान नहीं महसूस होता बल्कि उन्हें विश्वासघात महसूस होता है।
हर बड़े ब्रांड पर कभी-कभी ऐसा समय आता है जब उसकी मशीनरी लड़खड़ाती है। इंडिगो के साथ अभी वही क्षण है। वर्षों तक यह ब्रांड केवल कम किराए के लिए नहीं, बल्कि समय-पालन के लिए पहचाना गया। यह भरोसा कि उड़ान समय पर उतरेगी और ग्राहक बिना तनाव के अपने गंतव्य तक पहुंचेगा । यही इसकी नींव थी। जब नींव हिलती है, तो समस्या सिर्फ सेवा की नहीं रहती बल्कि पहचान की हो जाती है।
अब जब सिस्टम लड़खड़ा रहा है, इंडिगो को छह चीजें स्पष्ट रूप से करनी होंगी। सबसे पहला कदम है यात्री की पीड़ा को स्वीकार करना। लोग केवल देर से नहीं पहुँचे बल्कि उन्होंने घंटों प्रतीक्षा की, परिवारों के साथ फर्श पर सोए, बैगेज खोया और जानकारी के अभाव में निराश होते रहे। ह्लअसुविधा के लिए खेद हैह्व अब पर्याप्त नहीं है। कंपनी को यह बताना होगा कि उसने तकलीफ को सच में समझा है। यात्रियों की सबसे बड़ी शिकायत अस्पष्टता रही। जब उड़ानें रद्द होती हैं और कोई बोलने वाला नहीं होता, तो भरोसा टूटता है। इंडिगो को लगातार, ईमानदार और दृश्य संवाद स्थापित करना होगा चाहें वह एयरपोर्ट डिस्प्ले पर, ऐप में अथवा मैसेजिंग में हो। लोग समस्या नहीं, प्रयास देखते हैं। यदि ट्रेनिंग, रोस्टर और ऑपरेशन को सुधारा जा रहा है, तो यह दिखना चाहिए। नेतृत्व को सामने आना होगा, सिर्फ लुकाछिपी बयान जारी करने से बात नहीं बनेगी।
इंडिगो की सबसे बड़ी पूंजी उसका दक्ष संचालन था। अब यह दक्षता केवल उड़ान भराने का दबाव नहीं बल्कि सुरक्षा, स्टाफ उपलब्धता और समय की यथार्थ योजना के आधार पर बननी चाहिए। पहले स्थिरता, फिर विस्तार। जब सेवा टूटती है तो ग्राहक क्षतिपूर्ति की अपेक्षा रखते हैं। तुरंत रिफंड, प्राथमिक पुनर्बुकिंग, वाउचर या वैकल्पिक सहायता होनी चाहिए । ये सब विश्वास लौटाने के साधन हैं। लोग गलती को क्षमा करते हैं, पर चुप्पी को नहीं। क्या हुआ, क्यों हुआ और कब सुधरेगा इन तीन सवालों के जवाब खुलकर देने होंगे। यह समय इंडिगो के लिए संकट नहीं, एक परीक्षण है। यदि कंपनी इसे एक नयी शुरूवात का अवसर मानकर सच्चाई बोलते हुए पारदर्शी कार्रवाई दिखाती है, तो भरोसा लौट आएगा। पर यदि सब कुछ सामान्य बताने की कोशिश की गई, तो यात्री चुपचाप दूसरी ओर मुड़ जाएंगे। प्रतिष्ठा वही होती है जो कठिन समय में कायम रहती है।