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रात में सिरहाने घड़ी की टिक-टिक, मोबाइल की रोशनी या किसी भी इलेक्ट्रॉनिक चीज़ का पास होना सुनने में मामूली लगता है, लेकिन यह आपकी नींद, मानसिक ऊर्जा और अगले दिन के मूड पर असर डाल सकता है। कई लोग अनजाने में अपनी घड़ी, चाहे डिजिटल हो या एनालॉग, सिरहाने रखकर सोते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है इससे समय देखना आसान होता है।
लेकिन बढ़ते नींद के विकार, तनाव और अनिद्रा पर हुए कई शोध बताते हैं कि यह आदत आपके लिए कई अनदेखे नुकसान लेकर आती है। वास्तु और स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी इसे ऊर्जा संतुलन के लिए हानिकारक मानते हैं। भावनात्मक तौर पर देखें, हमें सुविधाजनक लगती हैं, वही धीरे-धीरे हमारे स्वास्थ्य की सबसे बड़ी दुश्मन बन सकती हैं।
तो क्या सच में सिरहाने घड़ी रखना नुकसानदायक है? क्या यह सिर्फ वास्तु दोष है या इसके पीछे वैज्ञानिक वजहें भी हैं? आइए, जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।
भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार नींद और दिशा का गहरा संबंध होता है। नींद के दौरान हमारा मन और शरीर ब्रह्मांडीय ऊर्जा को सबसे अधिक ग्रहण करता है। जब आप सिरहाने घड़ी रखते हैं, खासकर डिजिटल घड़ी, तो उससे निकलने वाली रोशनी, चुंबकीय तरंगें और कंपन ऊर्जा प्रवाह को बाधित कर देती हैं। यह आदत मानसिक, ऊर्जा और स्वास्थ्य स्तर पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
सोते समय घड़ी की टिक-टिक या बीप साउंड मन को अस्थिर करती है। इससे नींद बार-बार टूटती है और सुबह व्यक्ति तरोताजा महसूस नहीं करता। समय के साथ यह मानसिक सेहत पर गंभीर असर डाल सकता है और चिंता व तनाव बढ़ा सकता है।
घड़ी की लगातार गतिविधि कमरे में स्थिरता को कम करती है। इससे रिश्तों और घर की ऊर्जा पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वास्तु विशेषज्ञ खासकर विवाह योग्य लड़कियों को इसे सिरहाने रखने से बचने की सलाह देते हैं।
नींद विशेषज्ञ बताते हैं कि सोते समय मस्तिष्क पूरी तरह शांति चाहता है। घड़ी की आवाज, रोशनी और लगातार गतिविधि दिमाग को सक्रिय रखती है। इसका असर नींद के चक्र पर पड़ता है और सुबह थकान, चिड़चिड़ापन और झुंझलाहट बनी रहती है। कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि सिर के पास इलेक्ट्रॉनिक चीजें रखने से मेलाटोनिन का स्तर भी कम हो जाता है, जो शरीर को सोने का संकेत देता है।
डिजिटल घड़िया और मोबाइल अलार्म लगातार EMF वेव्स छोड़ती हैं। सामान्य स्थिति में यह ज्यादा हानिकारक नहीं लगता, लेकिन सिर के बिल्कुल पास रखने पर इसके असर बढ़ जाते हैं। सिरदर्द, माइग्रेन, आँखों में जलन और बेचैनी जैसी समस्याएँ होने लगती हैं। शरीर को सोते समय हीलिंग मोड में होना चाहिए, लेकिन ये तरंगें इसे अलर्ट मोड में रखती हैं।
रात में बार-बार समय देखने के लिए जागना दिमाग को अचानक सक्रिय कर देता है। इससे कोर्टिसोल का स्तर बढ़ता है, हार्टबीट तेज होता है और ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव आता है। नींद वापस आने में दिक्कत होती है और समय के दबाव का तनाव बढ़ता है।
वास्तु के अनुसार, घड़ी समय और गति का प्रतीक है। नींद के दौरान इसकी मौजूदगी रिश्तों में बेचैनी और तनाव बढ़ा सकती है। दांपत्य जीवन में यह अनबन और छोटी-छोटी बहस को बढ़ावा देती है। जिस कमरे में घड़ी सिरहाने रखी जाती है, वहाँ स्थिरता और संतुलन कम हो जाता है।
सिरहाने घड़ी रखने से मानसिक स्वास्थ्य लगातार प्रभावित होता है। नींद टूटने और मानसिक सक्रियता के कारण चिंता और ओवरथिंकिंग बढ़ती है। डिजिटल घड़ी की हल्की LED लाइट मस्तिष्क को पूरी तरह आराम नहीं करने देती, जिससे नींद का चक्र कमजोर होता है। शरीर की मरम्मत और हीलिंग प्रक्रियाएँ धीमी पड़ जाती हैं। थकान दूर नहीं होती, माइग्रेन बढ़ता है, त्वचा पर असर होता है और इम्यूनिटी कमज़ोर हो जाती है।
इस आदत को सुधारने के लिए घड़ी को बेड से कम से कम 4-6 फीट दूर रखें। मोबाइल अलार्म की बजाय बैटरी वाली साइलेंट घड़ी का उपयोग करें। कमरे में ब्लू लाइट पूरी तरह बंद रखें और सोने से पहले समय देखने की आदत छोड़ दें। साथ ही मन को शांत करने के लिए सोने से पहले 2 मिनट गहरी सांस लें।